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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * २३ *
अंगपण्णत्ती में वर्णन है कि बाईस परीषहों और चार प्रकार के उपसर्गों के सहन का विधान, उसका फल तथा प्रश्नों का उत्तर; यह उत्तराध्ययन का प्रतिपाद्य विषय है।५५
हरिवंशपुराण में आचार्य जिनसेन ने लिखा है कि उत्तराध्ययन में वीर निर्वाण गमन का वर्णन है।५६
दिगम्बर साहित्य में जो उत्तराध्ययन की विषय-वस्तु का निर्देश है, वह वर्णन वर्तमान में उपलब्ध उत्तराध्ययन में नहीं है। आंशिक रूप से अंगपण्णत्ती का विषय मिलता है, जैसे-(१) बाईस परीषहों के सहन करने का वर्णन-दूसरे अध्ययन में, तथा (२) प्रश्नों के उत्तर-उनतीसवें अध्ययन में।
प्रायश्चित्त का विधान और भगवान महावीर के निर्वाण का वर्णन उत्तराध्ययन में प्राप्त नहीं है। यह हो सकता है कि उन्हें उत्तराध्ययन का अन्य कोई संस्करण प्राप्त रहा हो। तत्त्वार्थराजवार्तिक में उत्तराध्ययन को आरातीय आचार्यों (गणधरों के पश्चात् के आचार्यों) की रचना माना है।५७
समवायांग५८ और उत्तराध्ययननियुक्ति५९ आदि में उत्तराध्ययन की जो विषय सूची दी गई है, वह उत्तराध्ययन में ज्यों की त्यों प्राप्त होती है। अतः यह असंदिग्ध रूप से कहा जा सकता है कि उत्तराध्ययन की विषय-वस्तु प्राचीन है। वीर निर्वाण की प्रथम शताब्दी में दशवैकालिकसूत्र की रचना हो चुकी थी। उत्तराध्ययन दशवैकालिक के पहले की रचना है, वह आचारांग के पश्चात् पढ़ा जाता था, अतः इसकी संकलना वीर निर्वाण की प्रथम शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ही हो चुकी थी। क्या उत्तराध्ययन भगवान महावीर की अन्तिम वाणी है ?
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि क्या उत्तराध्ययन श्रमण भगवान महावीर की अन्तिम वाणी है ? उत्तर में निवेदन है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी ने कल्पसूत्र में लिखा है कि श्रमण भगवान महावीर कल्याणफलविपाक वाले पचपन अध्ययनों और पापफल वाले पचपन अध्ययनों एवं छत्तीस अपृष्ट व्याकरणों का व्याकरण कर प्रधान नामक अध्ययन का प्ररूपण करते-करते सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गये।६०
इसी आधार से यह माना जाता है कि छत्तीस अपृष्ट व्याकरण उत्तराध्ययन के ही छत्तीस अध्ययन हैं। उत्तराध्ययन के छत्तीसवें अध्ययन की अन्तिम गाथा से भी प्रस्तुत कथन की पुष्टि होती है
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