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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * २७३ *
श्रुत शब्द का अर्थ, लक्षण, स्वरूप
श्रुत का विश्लेषण-जैनागमों में शास्त्र शब्द के बदले श्रुत शब्द का ही अधिक प्रयोग मिलता है। बल्कि विविध जैनागमों में आगमधर, आगमकेवली या बहुसूत्री शब्दों के बदले श्रुतधर, श्रुतकेवली, बहुश्रुत आदि शब्दों का प्रयोग प्रायः मिलता है। श्रुत का प्रयोग प्राचीनकाल में प्रचलित था; इसलिए अधिकतर शास्त्र गुरु अपने शिष्यों को कण्ठस्थ करा देता था। शिष्य अपने शिष्यों को कण्ठस्थ करा देता था। इस प्रकार श्रुत परम्परा से शास्त्रीय ज्ञान चल रहा था। इसलिए शास्त्रों को 'श्रुत' कहा जाता था। वेदों के लिए 'श्रुति' शब्द का प्रयोग भी इसी दृष्टि से किया गया था कि वेद भी प्राचीनकाल में कण्ठस्थ कराये जाते थे। शास्त्रों के मूल पाठों में यत्र-तत्र ऐसा ही पाठ मिलता है- “सुयं मे आउसंतेण भगवया एवमक्खायं।'' सुधर्मा स्वामी अपने पट्ट-शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं"आयुष्मन् ! मैंने उन भगवान महावीर से सुना है, उन्होंने ऐसा कहा था।' इससे स्पष्ट है कि उस समय गुरु-मुख से शास्त्र के श्रवण की परम्परा प्रचलित थी। सुनकर वे (शिष्य) उसे कण्ठस्थ कर लेते थे।३५ श्रुत शब्द भी आगम का पर्यायवाचक है : क्यों और कैसे ? ___ उस समय साधकों में धारणा-शक्ति की प्रबलता थी, तब आगमों को कण्ठस्थ करने की तथा कोष्ठ बुद्धि में सुरक्षित रखने की परम्परा चली आ रही थी। आगमों का लिखना बिल्कुल निषिद्ध था। यदि किसी ने एक गाथा भी लिख ली तो प्रायश्चित्त का भागी बनता था। क्योंकि लिखने में स्याही का आरम्भ, कागजों या ताड़-पत्रों का ममत्वपूर्वक संग्रह परिग्रह माना जाता था। यहाँ तक कि कोई भी लिखा हुआ ग्रन्थ या पोथी आदि रखना निर्ग्रन्थों के लिए वर्जनीय था। पुस्तकों या पन्नों को परिग्रह के भय से पास में न रखकर जहाँ-तहाँ किसी गृहस्थ के यहाँ रखने से आगमों या जिनवाणी की आशातना हो जाने या उन पोथी-पन्नों की प्रतिलेखना न होने से उनमें जीव-जन्तु उत्पन्न हो जाने या प्रविष्ट हो जाने से हिंसा की आशंका भी थी। इस कारण श्रुत-परम्परा से ही आगमों का पठन-पाठन चलता था। इस कारण आगमों के लिए श्रुत शब्द रूढ़ हो गया। बाद में द्वादशवर्षीय दुष्काल के कारण स्मृतिमन्दता एवं धारणा-शक्ति के हास के कारण शास्त्रों को लिपिबद्ध किया गया। अन्यथा ऐसा न करते तो आज जो जिनवाणी उपलब्ध है, वह भी देखने, सुनने, पढ़ने को न मिलती।३६
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