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________________ २७२ मूलसूत्र : एक परिशीलन द्वारा प्रतिपादित अर्थ को गणधरों द्वारा रचित अंगसूत्रों के आधार पर किया गया है । इसलिए नन्दीसूत्र को सूत्र कहना यथार्थ है । सूत्र शब्द के अनेक अर्थ हैं । एक अर्थ तो ऊपर हम बता चुके हैं। सूत्र का दूसरा अर्थ यह है कि जिस प्रकार सूत्र ( सूत या धागे) में पिरोई हुई सुई सुरक्षित रहती है, जबकि सूत्र से रहित सुई खो जाती है, उसी प्रकार जिसने सूत्रों का ज्ञान श्रद्धा-भक्ति - मनोयोगपूर्वक कर लिया है, वह उन सूत्रों के ज्ञानरूप धागे के सहारे से कहीं अज्ञान, मिथ्यात्व, असदाचार एवं दीर्घ संसारवर्द्धक निकाचित कर्म में भटकता नहीं । ३३ कदाचित् पूर्व संस्कारवश या लाचारी से मोहवश कभी भटक भी जाये तो वापस सन्मार्ग पर आकर मेघकुमार मुनि आदि की तरह पुनः सँभलकर मोक्षमार्ग को प्राप्त कर लेता है अथवा प्रसन्नचन्द्र राजर्षि की तरह शीघ्र ही सिद्धत्व (मोक्ष) को प्राप्त कर लेता है । नन्दीसूत्र भी इसी प्रकार का सूत्र है, क्योंकि इसमें ज्ञान का वर्णन है। ज्ञान से आत्मा प्रकाशमान होता है । वह स्व-पर-प्रकाशक होने से अज्ञानान्धकार में या जन्म-मरणात्मक संसारतिमिर में नहीं भटकता । पाणिनीय व्याकरण के महाभाष्यकार पतंजलि ने सूत्र का लक्षण इस प्रकार किया है “अल्पाक्षरमसंदिग्धं, सारवद् विश्वतोमुखम् । अस्तोभमनवयं च, सूत्रं सूत्रविदो विदुः ॥१३४ अर्थात् जो अल्प अक्षरों से युक्त हो, जिसके वचन में कोई संदेह या पूर्वा-पर विरोध न हो, सारभूत वस्तु कथन हो, जो शास्त्र सर्वतोमुखी हो - सर्वजनोपयोगी हो, जिसमें कहीं स्खलना न हो, जिसका प्रवाह बीच-बीच में टूटता न हो, जो राग-द्वेषादि दोषों-पापों से रहित निरवद्य हो, निर्दोष हो । उसे ही सूत्रवेत्ता सूत्र कहते हैं। सूत्र के लक्षणों की इस कसौटी पर भी नन्दीसूत्र को कसकर देखा जाये तो वह खरा उतरेगा । इसलिए नन्दीसूत्र के सूत्रत्व में कोई संदेह नहीं है। संस्कृत भाषा में 'सुत्त' शब्द के चार रूप प्राकृत भाषा के 'सुत्त' शब्द के संस्कृत भाषा में चार रूप बनते हैं(१) सूत्र, (२) श्रुत, (३) सूक्त, और (४) सुप्त । 'सूत्र' शब्द के सम्बन्ध में विश्लेषण ऊपर किया जा चुका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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