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* २६२ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
लब्धि वाले श्रुतज्ञानी को एक पद को सुनकर या पढ़कर उससे सम्बन्धित समस्त पदों का ज्ञान हो जाता था। किसी-किसी के ज्ञान का क्षयोपशम इतना प्रबल होता है कि वे एक या दो मिनट में ग्रन्थ या पुस्तक का पूरा का पूरा पेज पढ़ जाते हैं और हृदयंगम कर लेते हैं। स्वामी विवेकानन्द की पढ़ने की स्पीड ऐसी ही थी। एक बार रुग्णावस्था में उनके पास विश्वकोष के बड़े-बड़े छह-सात भाग रखे थे, उन्हें कुछ ही दिनों में उन्होंने पढ़ डाले। उनके एक शिष्य ने शंका प्रकट की-“गुरुदेव ! इन बड़े-बड़े ग्रन्थों को शायद ही कोई जिंदगीभर में पढ़ सकता होगा।" इस पर स्वामी जी ने कहा-“मैं इनमें से कई भाग तो पढ़ चुका हूँ, बाकी के भाग भी दो-चार दिनों में पढ़ सकूँगा।तू इनमें से कोई भी स्थल मुझे पूछ सकता है।' शिष्य ने विश्वकोश के कई कठिन स्थलों के विषय में पूछा तो स्वामी जी ने कोश में लिखित वाक्य-रचना ज्यों की त्यों सुना दी; बल्कि अपनी ओर से विशेष प्रकाश भी डाला। यह देखकर शिष्य चकित रह गया। यह है ज्ञान की प्रचण्ड शक्ति का प्रमाण !२० ज्ञान ही चारित्रगुणरूप है
ज्ञान-बल का आचरणात्मक पहलू भी है, जिसके द्वारा व्यक्ति में ज्ञान की ऐसी शक्ति आ जाती है कि वह अपने आध्यात्मिक तत्त्व या सिद्धान्त पर अन्त तक टिका रहता है, वह आत्म-ज्ञान से-स्वरूप-ज्ञान से विचलित नहीं होता, न ही उस पर शंका, कांक्षा और विचिकित्सा करके अपने सत्य (सिद्धान्त) से हटता है। भगवान महावीर पर कितने ही भयंकर उपसर्ग (संकट या कष्ट) आए, पर वे आत्मा की नित्यता के सिद्धान्त से विचलित न होकर इसी ज्ञान-बल के आधार पर समभाव से सहते रहे। सुदर्शन श्रमणोपासक को आत्मा के अविनाशित्व, नित्यत्व का ज्ञान हृदयंगम हो चुका था, इसी ज्ञान-बल के कारण वह अर्जुन मालाकर भयंकर प्राणघातक आतंक और मँडराती हुई साक्षात् मौत को देखकर भी नहीं घबराया, समभावपूर्वक अपने आत्म-ज्ञान में स्थिर रहा। अर्हन्नक श्रावक पर परीक्षक देव ने परीक्षा लेने हेतु भयंकर उपसर्ग किये, डराया, धमकाया, प्रलोभन भी दिया, साथियों को भी बहकाया, फिर भी अर्हन्नक श्रावक आत्मा के अविनाशित्व एवं नित्यत्व धर्मज्ञान पर अडिग रहा। ऐसे कई शास्त्रीय उदाहरण हैं कि बड़े से बड़े संकट, भय और आतंक के समय भी आत्म-ज्ञान के बल पर अविचलित रहे, आराधक हुए। इसीलिए शास्त्रों में इस अध्यात्म ज्ञान को 'ज्ञानाचार' कहा है।२१
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