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________________ नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * २५९ * निकटवर्ती किसी ग्राम में गये थे। दूसरे दिन प्रातःकाल वे आने वाले थे। इस एक रात का लाभ उठाने के लिए यशोविजय जी और विनयविजय जी ने गुरु-पत्नी के पास आकर अतिनम्र भाव से उस ग्रन्थ को देखने देने की विनती की। गुरु-पत्नी इन दोनों पर प्रसन्न थी। अत्याग्रह करने पर उसने वह ग्रन्थ इन्हें दे दिया। उस एक ही रात में यशोविजय जी ने उसके ७०० और विनयविजय जी ने ५०० श्लोक कण्ठस्थ कर लिये। पण्डित जी के आने से पहले ही वह ग्रन्थ पण्डितानी को सौंपकर पेटी में रखवा दिया गया। दोपहर में पण्डित जी से इन दोनों अध्ययनार्थियों ने इस अपराध के लिए क्षमा माँगी। पण्डित जी ने उन्हें श्लोक बोलने को कहा। दोनों ने बारी-बारी से सारा ग्रन्थ धड़ाधड़ बोलकर सुना दिया। सुनकर पण्डित जी की आँखों में हर्षाश्रु उमड़ पड़े। उपाध्याय यशोविजय जी और विनयविजय जी को एक रात में १,२०० श्लोक कण्ठस्थ करने में बहुत ही आनन्द आया, उन्हें बिल्कुल थकान महसूस न हुई।१७ - इसीलिए अन्धी, गूंगी और बहरी हेलन केलर ने कहा-“Knowledge is Happiness." अर्थात् ज्ञान आनन्दरूप है। हेलन केलर की स्थिति ऐसी थी, मानो उसे कोयले की गाढ़ अन्धकारपूर्ण खान में पूर दी गई हो। परन्तु उस अन्धकार भरी स्थिति में जब उसे ज्ञान मिला तो अपूर्व आनन्द का, आत्मिक सुख का अनुभव हुआ। वह ज्ञान के कारण एक क्षण भी जड़वत् नहीं रही। प्रज्ञाचक्षु पं. सुखलाल जी ने बातचीत के दौरान कहा-“मृत्यु के तट पर ला देने वाले बाह्य और अन्तरंग विक्षेपों के बीच भी मैं ऐहिक आनन्दलोक में प्रविष्ट हुआ हूँ। ज्ञान में इस प्रकार के आत्मिक सुख या आनन्द के सर्जन का अद्भुत सामर्थ्य है। ऐसा आत्मिक सुख सहज है, आन्तरिक है और स्वतन्त्र है। दुनियाँदारी के सुखों से उच्चतर है।" व्यावहारिक ज्ञान की दृष्टि से देखें तो भी उसे प्राप्त करने पर जिज्ञासु मनुष्य को सुख और आनन्द प्राप्त होता है। एक धनिक की पत्नी मर गई। उसे इसका सख्त आघात लगा। अब वह पत्नी के वियोग में शोकमग्न होकर रात-दिन सोफे पर बैठा रहता। उसके मित्र और सगे-सम्बन्धी उसका शोक मिटाने का जी-तोड़ प्रयत्न करने लगे, परन्तु सब व्यर्थ! एक दिन उसका नौकर सुबह-सुबह चाय की ट्रे में स्थित कप, रकाबी में चाय-नाश्ता लेकर आया। हताश धनिक की नजर एकाएक चाय की ट्रे, कप और रकाबी पर लिखे हुए चित्र-विचित्र चीनी अक्षरों पर पड़ी। फलतः उसमें चीनी भाषा जानने-सीखने की उत्कण्ठा जागी। उसने नौकर को बाजार से 'चायनीज-फ्रेंच डिक्सनरी' खरीद लाने का आदेश दिया। डिक्सनरी आते ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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