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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन *२५७*
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ज्ञान आत्मा का स्व-पर-प्रकाशक है
ज्ञान आत्मा का प्रकाश है। इसे किसी दूसरे प्रकाश की जरूरत नहीं। यह स्वयं भी प्रकाशमान है और पर-पदार्थों, विभावों आदि का भी प्रकाशक है।१० एक विचारक के 'ज्ञान को बहुमूल्य रत्नों से अधिक प्रकाशकर' माना है। सिद्ध परमात्मा में अनन्त शुद्ध सम्यक् ज्ञान होता है, उनकी स्तुति करते हुए आचार्य भद्रबाहु ने 'चतुर्विंशतिस्तव' में कहा है-"आइचेसु अहियं पयासयरा।"-आप (अपने अनन्त ज्ञान द्वारा) सैकड़ों सूर्यों से भी अधिक प्रकाश करने वाले हैं। तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव) की स्तुति करते हुए मानतुंगाचार्य ने भी कहा है-“दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः।"११-हे भगवन ! आप (निर्धम, तेलबत्ती से रहित तथा कभी न बुझने वाले) समग्र जगत् के प्रकाशक (उस मिट्टी के दीपक से भिन्न) शाश्वत दीपक हैं। प्रकट करने वाले हैं। इसीलिए उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है-"नाणस्स सव्वस्स पगासणाए।"१२ अर्थात् (स्व-पर-पदार्थों के) अपने समग्र ज्ञान के प्रकाशन (प्रकटन) न होने से। अतएव एक पाश्चात्य विचारक ने कहा-“Knowledge is Light."-ज्ञान आत्मा का निजी प्रकाश है, भावात्मक प्रकाश है। ज्ञान सूर्य का प्रकाश हो जाने पर मनुष्य अपने जीवन में आने वाले अज्ञान, मिथ्यात्व, मिथ्या ज्ञान, बहम, अन्ध-श्रद्धा, मिथ्या मान्यता, अन्ध-विश्वास, पूर्वाग्रह, द्वन्द्व, उलझन एवं बौद्धिक अन्धता आदि सबको नष्ट कर देता है।
छहों भारतीय दर्शनों पर प्रखर टीका लिखने वाले वाचस्पति मिश्र १२ वर्ष तक ज्ञान की आराधना में इतने गहरे डूब गये कि उन्हें बाहरी दुनियाँ का बिल्कुल ही भान नहीं रहा। न ही मैं स्वयं “भामतीदेवी' के साथ विवाहित हूँ, इसका स्मरण रहा। ब्रह्मसूत्र पर टीका लिखने में इतने एकाग्र हो गये कि आत्म-ज्ञान का प्रकाश ही उन्हें इस बाह्य दुनियाँ की मोह, माया, आसक्ति आदि के अन्धकार से बचाने में सक्षम हो सका।१३ वास्तव में ज्ञान के द्वारा साधक के अन्तर में हेय, ज्ञेय और उपादेय का यथार्थ प्रकाश हो जाता है। जब ज्ञान का प्रकाश अन्तर में व्याप्त हो जाता है तो मनुष्य को स्व-पर का, जड़ और चेतन का तथा आत्मा और अनात्मा का भेदविज्ञान, दोनों की पृथकता का प्रति क्षण स्मरण अनायास ही हो जाता है। पवित्र ज्ञान का प्रकाश जिसके अन्तर में हो जाता है, वह व्यक्ति ज्ञाता-द्रष्टा बनकर अभावों या अल्प साधनों में सन्तुष्ट एवं सुख-शान्तिमय जीवन बिताता है। अतः ज्ञान आत्मा का प्रकाश है, जो सदा एकरस और शाश्वत है, बन्धनों से मुक्त रखने में सक्षम है। इसी तरह
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