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२५४ मूलसूत्र : एक परिशीलन
प्रत्याख्यान - परिज्ञा से हेय को छोड़ने और उपादेय को ग्रहण करने का विधान भी किया है, आचरण भी बताया है।
भी
ज्ञान और आत्मा पृथक्-पृथक् प्रतीत होते हुए निश्चय दृष्टि से अभिन्न
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निष्कर्ष यह है कि ज्ञान और आत्मा व्यवहार दृष्टि से पृथक्-पृथक् प्रतीत होते हुए भी आचारांगसूत्र में निश्चय दृष्टि से दोनों को अभिन्न बताया गया है" जो आत्मा है, वह विज्ञान (विशिष्ट ज्ञान ) है, जो विज्ञान (ज्ञान) है, वह आत्मा है।” आत्मा या जीव का लक्षण भी उपयोग (ज्ञान-दर्शन रूप) अथवा 'चेतना लक्षण' कहा गया है। तैत्तिरीयोपनिषद् में भी कहा गया है - "सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।” अर्थात् सत्य ज्ञान अनन्त है, ब्रह्म रूप है।
मोक्षवादी दार्शनिकों की दृष्टि में मुक्ति के लिए ज्ञान की प्राथमिकता
इसीलिए ज्ञानवाद के प्ररूपक मोक्षवादी समस्त दार्शनिकों ने कहा- "ऋते ज्ञानान्न मुक्ति ।"" अर्थात् ज्ञान के बिना मुक्ति प्राप्त नहीं होती । जैनदर्शन का भी यही अभिमत है कि केवलज्ञान (पूर्ण सम्यक् ज्ञान ) प्राप्त हुए बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है - "सम्यक् दर्शन ( सम्यक् दृष्टि) के बिना ज्ञान सम्यक् नहीं होता और सम्यक् ज्ञान के बिना चारित्र गुण सम्यक् नहीं होता और सम्यक् चारित्र से रहित को मोक्ष (सर्वकर्ममुक्ति) नहीं होता और मोक्ष प्राप्ति से रहित को निर्वाण नहीं होता।" ६ इससे स्पष्ट है, मोक्षोपाय के सन्दर्भ में सम्यक् ज्ञान को प्राथमिकता दी गई है । संसारी जीवों की आत्मा का ज्ञान तो सिद्धों के समान अनन्त है, परन्तु अभी वह कर्मों से आवृत है, कुण्ठित है, सुषुप्त है अथवा भ्रान्तरूप में है, ज्ञान-साधना में सम्यक् पुरुषार्थ करने पर जब वह अनावृत, प्रखर एवं परिपूर्ण रूप से प्रकट हो जाता है, तब आत्मा अपने पूर्ण शुद्ध रूप में पहुँचकर अनन्त ज्ञान - अनन्त दर्शनमय (केवलज्ञानी - केवलदर्शनी) हो जाता है। ज्ञान की परिपूर्णता ही आत्मा का- - विशेषतः साधक आत्मा का चरम लक्ष्य है। ज्ञान के परिपूर्ण हो जाने पर आत्मा यथाशीघ्र कर्म, देह और जन्म-मरणादि के दुःखों से सर्वथा विमुक्त हो जाता है।
नन्दीसूत्र में ज्ञान से सम्बन्धित समग्र सांगोपांग वर्णन
यही कारण है कि 'नन्दीसूत्र' में आत्मा को परमात्म- पद या मोक्ष प्राप्त करने हेतु विविध पहलुओं से ज्ञान का वर्णन किया गया है। अर्थात् ज्ञान क्या है ? वह कितने प्रकार का है ? उसके भेद-प्रभेद कितने हैं ? उनमें परोक्ष और
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