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* २० * मूलसूत्र : एक परिशीलन
प्रत्येकबुद्धभाषित अध्ययन भी प्रत्येकबुद्ध द्वारा ही रचे गये हों, यह बात नहीं है। क्योंकि आठवें अध्ययन की अन्तिम गाथा में यह बताया है कि विशुद्ध प्रज्ञा वाले कपिल मुनि ने इस प्रकार धर्म कहा है। जो इसकी सम्यक् आराधना करेंगे, वे संसार-समुद्र को पार करेंगे। उनके द्वारा ही दोनों लोक आराधित होंगे।३९ यदि प्रस्तुत अध्ययन कपिल के द्वारा विरचित होता तो वे इस प्रकार कैसे कहते?
संवाद-समुत्थित अध्ययन नौवें और तेईसवें अध्ययनों का अवलोकन करने पर यह परिज्ञात होता है कि वे अध्ययन नमि राजर्षि और केशी-गौतम द्वारा विरचित नहीं हैं। नौवें अध्ययन की अन्तिम गाथा है-संबुद्ध, पण्डित, प्रविचक्षण पुरुष कामभोगों से उसी प्रकार निवृत्त होते हैं जैसे नमि राजर्षि।४० तेईसवें अध्ययन की अन्तिम गाथा है-समग्र सभा धर्मचर्चा से परम संतुष्ट हुई, अतः सन्मार्ग में समुपस्थित उसने भगवान केशी और गणधर गौतम की स्तुति की कि वे दोनों प्रसन्न रहें।४१
उपर्युक्त चर्चा का सारांश यह है कि नियुक्तिकार भद्रबाहु ने उत्तराध्ययन को कर्तृत्व की दृष्टि से चार वर्गों में विभक्त किया है। उसका तात्पर्य इतना ही है कि भगवान महावीर, कपिल, नमि और केशी-गौतम के उपदेश तथा संवादों को आधार बनाकर इन अध्ययनों की रचना हुई है। इन अध्ययनों के रचयिता कौन हैं और उन्होंने इन अध्ययनों की रचना कब की? इन प्रश्नों का उत्तर न नियुक्तिकार भद्रबाहु ने दिया, न चूर्णिकार जिनदासगणी महत्तर ने दिया है और न बृहवृत्तिकार शान्त्याचार्य ने ही दिया है। ____ आधुनिक अनुसंधानकर्ता विज्ञों का यह मानना है कि वर्तमान में जो उत्तराध्ययन उपलब्ध है, वह किसी एक व्यक्ति विशेष की रचना नहीं है, किन्तु अनेक स्थविर मुनियों की रचनाओं का संकलन है। उत्तराध्ययन के कितने ही अध्ययन भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित हैं तो कितने ही अध्ययन स्थविरों के द्वारा संकलित हैं।४२ इसका यह तात्पर्य नहीं है कि उत्तराध्ययन में भगवान महावीर का धर्मोपदेश नहीं है। उसमें वीतराग वाणी का अपूर्व तेज कभी छिप नहीं सकता। क्रूर काल की काली आँधी भी उसे धुंधला नहीं कर सकती। वह आज भी प्रदीप्त है और साधकों के अन्तर्जीवन को उजागर करता है। आज भी हजारों भव्यात्मा उस पावन उपदेश को धारण कर अपने जीवन को पावन बना रहे हैं। यह पूर्ण रूप से निश्चित है कि देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण तक उत्तराध्ययन
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