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* १८ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
(१) स-उत्तर
-पहला अध्ययन (२) निरुत्तर
-छत्तीसवाँ अध्ययन (३) स-उत्तर-निरुत्तर
-बीच के सारे अध्ययन परन्तु उत्तर शब्द की प्रस्तुत अर्थ-योजना जिनदासगणी महत्तर की दृष्टि से अधिकृत नहीं है।२७ वे नियुक्तिकार भद्रबाहु के द्वारा जो अर्थ दिया गया है, उसे प्रामाणिक मानते हैं। नियुक्ति की दृष्टि से यह अध्ययन आचारांग के उत्तरकाल में पढ़े जाते थे, इसीलिए इस आगम को 'उत्तर अध्ययन' कहा है।८ उत्तराध्ययनचूर्णि व उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति में भी प्रस्तुत कथन का समर्थन है। श्रुतकेवली आचार्य शय्यम्भव के पश्चात् यह अध्ययन दशवैकालिक के उत्तरकाल में पढ़े जाने लगे।२९ अतः ये उत्तर अध्ययन ही बने रहे हैं। प्रस्तुत उत्तर शब्द की व्याख्या तर्कसंगत है।
दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में उत्तर शब्द की विविध दृष्टियों से परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं। आचार्य वीरसेन ने षट्खण्डागम की धवलावृत्ति में लिखाउत्तराध्ययन उत्तर पदों का वर्णन करता है। यह उत्तर शब्द समाधान का प्रतीक है।२० अंगपन्नत्ति में आचार्य शुभचन्द्र ने उत्तर शब्द के दो अर्थ किये हैं-27
(१) उत्तरकाल-किसी ग्रन्थ के पश्चात् पढ़े जाने वाले अध्ययन, (२) उत्तर-प्रश्नों का उत्तर देने वाले अध्ययन।
इन अर्थों में उत्तर और अध्ययनों के सम्बन्ध में सत्य-तथ्य का उद्घाटन किया गया है। उत्तराध्ययन में ४, १६, २३, २५ और २९वाँ-ये अध्ययन प्रश्नोत्तर शैली में लिखे गये हैं। कुछ अन्य अध्ययनों में भी आंशिक रूप से कुछ प्रश्नोत्तर आये हैं। प्रस्तुत दृष्टि से उत्तर का ‘समाधान' सूचक अर्थ संगत होने पर भी सभी अध्ययनों में वह पूर्ण रूप से घटित नहीं होता है। उत्तरवाची अर्थ संगत होने के साथ ही पूर्ण रूप से व्याप्त भी है। इसलिए उत्तर का मुख्य अर्थ यही उचित प्रतीत होता है। ___ अध्ययन का अर्थ पढ़ना है। किन्तु यहाँ पर अध्ययन शब्द अध्याय के अर्थ में व्यवहृत हुआ है। नियुक्ति और चूर्णि में अध्ययन का विशेष अर्थ भी दिया है।३२ पर अध्ययन से उनका तात्पर्य परिच्छेद से है। उत्तराध्ययन की रचनाएँ
उत्तराध्ययन की रचना के सम्बन्ध में नियुक्ति, चूर्णि तथा अन्य मनीषी एक मत नहीं हैं। नियुक्तिकार भद्रबाहु की दृष्टि से उत्तराध्ययन एक व्यक्ति की रचना
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