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-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.उत्तरवैक्रियंधारी मुनि, सिद्ध अवस्था प्राप्त मुनि, पादपोपगमन अनशन को प्राप्त कर जो जिस स्थान पर जितने भक्त का अनशन कर अन्तकृत् हुए। अज्ञान-रज से विप्रमुक्त हो जो मुनिवर अनुत्तर सिद्धि मार्ग को प्राप्त हुए उनका वर्णन है। इसके अतिरिक्त इन्हीं प्रकार के अन्य भाव, जो अनुयोग में कथित हैं, वह 'प्रथमानुयोग' है। दूसरे शब्दों में यों कह सकते हैं- “प्रथमानुयोग में सम्यक्त्व-प्राप्ति से लेकर तीर्थ-प्रवर्तन और मोक्षगमन तक का वर्णन है।"२१ ।
दूसरा गण्डिकानुयोग है। गण्डिका का अर्थ है-समान वक्तव्यता से अर्थाधिकार का अनुसरण करने वाली वाक्य-पद्धति; और अनुयोग अर्थात् अर्थ प्रकट करने की विधि। आचार्य मलयगिरि ने लिखा है-इक्षु के मध्य भाग की गण्डिका सदृश एकार्थ का अधिकार यानि ग्रन्थ-पद्धति। गण्डिकानुयोग के अनेक प्रकार हैं-२२
(१) कुलकर गण्डिकानुयोग-विमलवाहन आदि कुलकरों की जीवनियाँ। (२) तीर्थंकर गण्डिकानुयोग-तीर्थंकर प्रभु की जीवनियाँ। (३) गणधर गण्डिकानुयोग-गणधरों की जीवनियाँ। (४) चक्रवर्ती गण्डिकानुयोग-भरतादि चक्रवर्ती राजाओं की जीवनियाँ। (५) दशार्ह गण्डिकानुयोग-समुद्रविजय आदि दशा) की जीवनियाँ। (६) बलदेव गण्डिकानुयोग-राम आदि बलदेवों की जीवनियाँ। (७) वासुदेव गण्डिकानुयोग-कृष्ण आदि वासुदेवों की जीवनियाँ। (८) हरिवंश गण्डिकानुयोग-हरिवंश में उत्पन्न महापुरुषों की जीवनियाँ। (९) भद्रबाहु गण्डिकानुयोग-भद्रबाहु स्वामी की जीवनी। (१०) तपःकर्म गण्डिकानुयोग-तपस्या के विविध रूपों का वर्णन। (११) चित्रान्तर गण्डिकानुयोग-भगवान ऋषभ तथा अजित के अन्तर
समय में उनके वंश के सिद्ध या सर्वार्थसिद्ध में गये हैं, उनका वर्णन। (१२) उत्सर्पिणी गण्डिकानुयोग-उत्सर्पिणी काल का विस्तृत वर्णन। (१३) अवसर्पिणी गण्डिकानुयोग-अवसर्पिणी काल का विस्तृत वर्णन।
देव, मानव, तिर्यंच और नरक गति में गमन करना, विविध प्रकार से पर्यटन करना आदि का अनुयोग 'गण्डिकानुयोग' में है। जैसे-वैदिक परम्परा में विशिष्ट व्यक्तियों का वर्णन पुराण-साहित्य में हुआ है, वैसे ही जैन परम्परा
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