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__ अनुयोगद्वारसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * २११
से स्व-स्वरूप को आलोकित करता है। जो यथार्थ सत्य का परिज्ञान करा सकता है, आत्मा का पूर्णतया परिबोध करा सके, जिससे आत्मा पर अनुशासन किया जा सके, वह आगम है। उसे दूसरे शब्दों में शास्त्र और सूत्र भी कह सकते हैं।
जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य में लिखा है-जिसके द्वारा यथार्थ सत्य रूप ज्ञेय का, आत्मा का परिबोध हो एवं आत्मा का अनुशासन किया जा सके, वह शास्त्र है।३ शास्त्र शब्द शास् धातु से निर्मित हुआ है, जिसका अर्थ है-शासन, शिक्षण और उद्बोधन। जिस तत्त्वज्ञान से आत्मा अनुशासित हो, उबुद्ध हो, वह शास्त्र है; जिससे आत्मा जागृत होकर तप, क्षमा एवं अहिंसा की साधना में प्रवृत्त होती है, वह शास्त्र है और जो केवल गणधर, प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली और अभिन्न दशपूर्वी के द्वारा कहा गया है, वह सूत्र है। दूसरे शब्दों में जो ग्रन्थ प्रमाण से अल्प अर्थ की अपेक्षा महान् बत्तीस दोषों से रहित, लक्षण तथा आठ गुणों से सम्पन्न होता हुआ सारवान् अनुयोगों से सहित, व्याकरणविहित, निपातों से रहित, अनिंद्य और सर्वज्ञ कथित है, वह सूत्र है।
इस सन्दर्भ में यह समझना आवश्यक है कि आगम कहो, शास्त्र कहो या सूत्र कहो, सभी का एक ही प्रयोजन है। वे प्राणियों के अन्तर्मानस को विशुद्ध बनाते हैं। इसलिए आचार्य हरिभद्र ने कहा-जैसे जल वस्त्र की मलिनता का प्रक्षालन करके उसको उज्ज्वल बना देता है, वैसे ही शास्त्र भी मानव के अन्तःकरण में स्थित काम, क्रोध आदि कालुष्य का प्रक्षालन करके उसे पवित्र और निर्मल बना देता है। जिससे आत्मा का सम्यक बोध हो, आत्मा अहिंसा, संयम और तपःसाधना के द्वारा पवित्रता की ओर गति करे, वह तत्त्वज्ञान शास्त्र है, आगम है। __ आगम भारतीय साहित्य की मूल्यवान निधि है। डॉ. हरमन जैकोबी, डॉ. शुलिंग प्रभृति अनेक पाश्चात्य मूर्धन्य मनीषियों ने जैन आगम-साहित्य का तलस्पर्शी अध्ययन कर इस सत्य-तथ्य को स्वीकार किया है कि विश्व को अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्तवाद के द्वारा सर्वधर्म-समन्वय का पुनीत पाठ पढ़ाने वाला यह सर्वश्रेष्ठतम साहित्य है।
आगम-साहित्य बहुत ही विराट और व्यापक है। समय-समय पर उसके वर्गीकरण किये गए हैं। प्रथम वर्गीकरण पूर्व और अंग के रूप में हुआ। द्वितीय वर्गीकरण अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य के रूप में किया गया। तृतीय
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