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दशवैकालिकसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * १८९ * ..-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.क्यों डाल रखे हैं ?" उत्तर में माली ने कहा-“मुझे प्रेतबाधा हो गई थी। यह हिंगुशिव नामक वाणव्यन्तर है।'
इसी प्रकार यदि कभी प्रमादवश प्रवचन की हँसी का प्रसंग उपस्थित हो जाय तो उसकी बुद्धिमानी से रक्षा करें।
एक लोककथा बुद्धि के चमत्कार को उजागर कर रही है
एक व्यक्ति ककड़ियों से गाड़ी भरकर नगर में बेचने के लिए जा रहा था। उसे मार्ग में एक धूर्त मिला, उसने कहा-“मैं तुम्हारी ये गाड़ी भर ककड़ियाँ खा लूँ तो मुझे क्या पुरस्कार दोगे?" ककड़ी वाले ने कहा-“मैं तुम्हें इतना बड़ा लड्डू दूंगा जो नगरद्वार में से निकल न सके।'' धूर्त ने बहुत सारे गवाह बुला लिए और उसने थोड़ी-थोड़ी सभी ककड़ियाँ खाकर पुनः गाड़ी में रख दीं
और लगा लड्डू माँगने। ककड़ी वाले ने कहा-"शर्त के अनुसार तुमने ककड़ियाँ खाई ही कहाँ हैं ?' धूर्त ने कहा- “यदि ऐसी बात है तो ककड़ियाँ बेचकर देखो।"
ककड़ियों की गाड़ी को देखकर बहुत सारे व्यक्ति ककड़ियाँ खरीदने को आ गये। पर ककड़ियों को देखकर उन्होंने कहा-“खाई हुई ककड़ियाँ बेचने के लिए क्यों लेकर आए हो?" ___ अन्त में धूर्त और ककड़ी वाला दोनों न्याय कराने हेतु न्यायाधीश के पास पहुँचे। ककड़ी वाला हार गया और धूर्त जी गया। उसने पुनः लड्डू माँगा। ककड़ी वाले ने उसे लड्डू के बदले में बहुत सारा पुरस्कार देना चाहा पर वह लड्डू लेने के लिए ही अड़ा रहा। नगर के द्वार से बड़ा लड्डू बनाना कोई हँसी-खेल नहीं था। ककड़ी वाले को परेशान देखकर एक दूसरे धूर्त ने उसे एकान्त में ले जाकर उपाय बताया कि एक नन्हा-सा लड्डू बनाकर उसे नगर द्वार पर रख देना और कहना-“लड्डू ! दरवाजे से बाहर निकल आओ।" पर लड्डू निकलेगा नहीं, फिर तुम वह लड्डू उसे यह कहकर दे देना कि यह लड्डू द्वार में से नहीं निकल रहा है। ___ इस प्रकार अनेक कथाएँ प्रस्तुत चूर्णि में विषय को स्पष्ट करने के लिए दी
गई हैं।
टीकाएँ
चूर्णि-साहित्य के पश्चात् संस्कृत भाषा में टीकाओं का निर्माण हुआ। टीका युग जैन-साहित्य के इतिहास में स्वर्णिम युग के रूप में विश्रुत है।
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