________________
१८८ मूलसूत्र : एक परिशीलन
द्वितीय अध्ययन में श्रमण के स्वरूप पर चिन्तन करते हुए - पूर्व, काम, पद आदि पदों पर विचार किया गया है।
तृतीय अध्ययन में दृढधृतिक के आचार का प्रतिपादन है । उसमें महत्, क्षुल्लक, आचार- दर्शनाचार, ज्ञानाचार, तपाचार, वीर्याचार, अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा, मिश्रकथा, अनाचीर्ण आदि का भी विश्लेषण किया गया है।
चतुर्थ अध्ययन में जीव, अजीव, चारित्र, यतना, उपदेश, धर्मफल आदि का परिचय दिया है।
पञ्चम अध्ययन में श्रमण के उत्तरगुण - पिण्डस्वरूप, भक्तपानैषणा, गमनविधि, गोचरविधि, पानकविधि, परिष्ठापनविधि, भोजनविधि आदि पर विचार किया गया है।
षष्ठ अध्ययन में धर्म, अर्थ, काम, व्रतषट्क, कायषट्क आदि का प्रतिपादन है। इसमें आचार्य का संस्कृत भाषा के व्याकरण पर प्रभृत्व दृष्टिगोचर होता है।
सप्तम अध्ययन में भाषा सम्बन्धी विवेचना है ।
अष्टम अध्ययन में इन्द्रियादि प्रणिधियों पर विचार किया है।
नौवें अध्ययन में लोकोपचारविनय, अर्थविनय, कामविनय, भयविनय, मोक्षविनय की व्याख्या है।
दशम अध्ययन में भिक्षु के गुणों का उत्कीर्तन किया है। चूलिकाओं में रति, अरति, विहारविधि, गृहिवैयावृत्य का निषेध, अनिकेतवास प्रभृत्ति विषयों से सम्बन्धित विवेचना है। चूर्णि में तरंगवती, ओघनिर्युक्ति, पिण्डनिर्युक्ति आदि ग्रन्थों का नामनिर्देश भी किया गया है।
प्रस्तुत चूर्णि में अनेक कथाएँ दी गई हैं, जो बहुत ही रोचक तथा विषय को स्पष्ट करने वाली हैं। उदाहरण के रूप में हम यहाँ एक-दो कथाएँ दे रहे हैं
प्रवचन का उड्डाह होने पर किस प्रकार प्रवचन की रक्षा की जाए ? इसे समझाने के लिए हिंगुशिव नामक वाणव्यन्तर की कथा है। एक माली पुष्पों को लेकर जा रहा था। उसी समय उसे शौच की हाजत हो गई। उसने रास्ते में ही शौच कर उस अशुचि पर पुष्प डाल दिए । राहगीरों ने पूछा - "यहाँ पर पुष्प
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org