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* १६४ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
है। भाव-भिक्षु वह है जो पूर्ण रूप से अहिंसक है; सचित्तत्यागी है, तीन करण, तीन योग से सावध प्रवृत्ति का परित्यागी है; आगम में वर्णित भिक्षु के जितने भी सद्गुण हैं, उन्हें धारण करता है।
भिक्षु की गौरव-गरिमा अतीतकाल से चली आई है। जैन, बौद्ध और वैदिक-तीनों ही परम्पराओं में भिक्षु शीर्षस्थ स्थान पर आसीन रहा है। वैदिक परम्परा में संन्यासी पूज्य रहा है, उसे दो हाथों वाला साक्षात् परमेश्वर माना है-“द्विभुजः परमेश्वरः।" बौद्ध परम्परा में भी भिक्षु का महत्त्व कम नहीं रहा है, भिक्षु धर्म-संघ का अधिनायक रहा है। जैन परम्परा में भी भिक्षु को परम पूज्य स्थान प्राप्त है। भिक्षु का जीवन सद्गुणों का पुञ्ज होता है। वह समाज, राष्ट्र के लिए प्रकाश-स्तम्भ की तरह उपयोगी होता है। वह स्व-कल्याण के साथ ही पर-कल्याण में लगा रहता है। धम्मपद में भिक्षु के अनेक लक्षण बताए गये हैं, जो प्रस्तुत अध्ययन में बताए गए लक्षणों से मिलते-जुलते हैं। विश्व में अनेक मूर्धन्य मनीषियों ने भिक्षु की विभिन्न परिभाषाएँ की हैं। सभी परिभाषाओं का सार संक्षेप में यह है कि भिक्षु का जीवन सामान्य मानव के जीवन से अलग-थलग होता है। वह विकार और वासनाओं से एवं राग-द्वेष से ऊपर उठा हुआ होता है। उसके जीवन में हजारों सद्गुण होते हैं। वह सद्गुणों से जन-जन के मन को आकर्षित करता है। वह स्वयं तिरता है और दूसरों को तारने का प्रयास करता है। भगवान महावीर स्वयं भिक्षु थे। जब कोई अपरिचित व्यक्ति उनसे पूछता कि आप कौन हैं तो संक्षेप में वे यही कहते कि मैं भिक्षु हूँ। भिक्षु के श्रमण, निर्ग्रन्थ, मुनि, साधु आदि पर्यायवाची शब्द हैं। भिक्षुचर्या की दृष्टि से इस अध्ययन का बहुत ही महत्त्व है। श्रमण-जीवन की महिमा उसके त्याग और वैराग्ययुक्त जीवन में रही हुई है। रति : विश्लेषण __ दशवैकालिक के दस अध्ययनों के पश्चात् दो चूलिकाएँ हैं। चूलिकाओं के सम्बन्ध में हम पूर्व पृष्ठों में लिख चुके हैं। प्रथम चूलिका ‘रतिवाक्या' के नाम से विश्रुत है। रति मोहनीयकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों में से एक प्रकृति है, जो नोकषाय के अन्तर्गत है। जैन मनीषियों ने 'नो' शब्द को साहचर्य के अर्थ में ग्रहण किया है। क्रोध, मान, माया, लोभ ये प्रधान कषाय हैं। प्रधान कषायों के सहचारी भाव अथवा उनकी सहयोगी मनोवृत्तियाँ नोकषाय कहलाती हैं।२०५ पाश्चात्य विचारक फ्रायड ने कामवासना को प्रमुख मूल वृत्ति मानी है और भय
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