SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन *१०७ -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.३६. (क) “पत्तेयबुद्धभासियाणि जहा काविलिज्जादि।" -उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ७ (ख) प्रत्येकबुद्धाः कपिलादयः तेभ्य उत्पन्नानि यथा कापिलियाध्ययनम्।" । -उत्तराध्ययन बृहवृत्ति, पत्र ५ ३७. “संवाओ जहा णमिपव्वज्जा केसिगोयमेज्जं च।' -उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ७ ३८. “एवं से उदाहु अणुत्तरनाणी, अणुत्तरनाणदंसणधरे। अरहा नायपुत्ते, भगवं वेसालिए वियाहिए॥" -उत्तराध्ययन ६/१८ ३९. “इइ एस धम्मे अक्खाए, कविलेणं च विसुद्धपन्नेणं। तरिहिन्ति जे उ काहिन्ति, तेहिं आराहिया दुवे लोगा॥' -उत्तराध्ययन ८/२० ४०. “एवं करेन्ति संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा। विणियट्टन्ति भोगेसु, जहा से नमी रायरिसी॥' -वही ९/६२ ४१. “तोसिया परिसा सव्वा, सम्मग्गं समुवट्ठिया। संथुया ते पसीयन्तु, भयवं केसिगोयमे ॥" -वही २३/८९ ४२. (क) देखिए-दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणं की भूमिका, आचार्य तुलसी (ख) उत्तराध्ययनसूत्र की भूमिका, कवि अमर मुनि जी ४३. “अत्र धम्माणुयोगेनाधिकारः।" -उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ९ ४४. उत्तराध्ययनचूर्णि, पृष्ठ ९ ४५. कल्पसूत्र ४६. “तेवीसइ सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु अ। जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ पणवीसभावणाहिं, उद्देसेसु दसाइणं। जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ अणगारगुणेहिं च, पकप्पम्मि तहेव य। जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले॥' -उत्तराध्ययन ३१/१६.१८ ४७. (क) “वंदामि भद्दबाहुं पाईणं, चेरिमसयलसुयणाणिं । सुत्तस्स कारगमिसिं, दसासु कप्पे य ववहारे॥" -दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति, गाथा १ (ख) “तेण भगवता आयारपकप्प-दसाकप्प-ववहारा व नवमपुव्वनीसंदभूता निज्जूढा।" ___-पंचकल्पभाष्य, गाथा २३ चूर्णि ४८. (क) “सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ।' -अन्तकृद्दशा, प्रथम वर्ग (ख) बारसंगी -वही, वर्ग ४, अध्ययन १ (ग) “सामाइयमाइयाइं चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ।' -वही, वर्ग ३, अध्ययन १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy