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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन १०५ *
Thus the term Mula Sutra would mean the 'Original test’, i.e., “The text containing the original words of Mahavira (as received directly from his mouth)." And as a matter of fact we find that the style of Mula Sutras No. 183 ( उत्तराध्ययन and दशवैकालिक) as sufficiently ancient to justify the claim made in their favour by original title, that they present and preserve the original words of Mahavira.”
११. “आयारस्स उ उवरिं, उत्तरज्झयणा उ आसि पुव्वं तु । दसवेयालिय उवरिं, इयाणि किं तेन होवंती उ ॥”
-The Dashavaikalika Sutra-A Study, Page 16
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१२. “पुव्वं सत्थपरिण्णा, अधीय पढियाइ होइ उवट्टवणा । इण्हिंच्छज्जीवणया, किं सा उ न होउ उवट्ठवणा ॥”
- व्यवहारभाष्य, उद्देशक ३, गाथा १७६ (संशोधक मुनि माणक., प्र. वकील केशवलाल प्रेमचन्द, भावनगर)
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- वही, उद्देशक ३, गाथा १७४
१३. समाचारीशतक
१४. " अथ उत्तराध्ययन-आवश्यक-1 - पिण्डनिर्युक्ति तथा ओघनिर्युक्ति-दशवैकालिकइति चत्वारि मूलसूत्राणि ।”
- जैनधर्मवरस्तोत्र, श्लोक ३० की स्वोपज्ञ वृत्ति ( लेखक - भावप्रभसूरि, झवेरी जीवनचन्द साकरचन्द्र )
१५. ए हिस्ट्री ऑफ दी केनोनिकल लिटरेचर ऑफ दी जैन्स, पृष्ठ ४४-४५, लेखकएच. आर. कापड़िया
१६. “ इच्चेतस्स सुत्तपुरिसस्स जं सुत्तं, अंगभागठितं तं अंगपविट्ठ भण्णइ ।”
- नन्दीसूत्रचूर्णि, पृष्ठ ४७ १७. श्री आगमपुरुषनुं रहस्य, पृष्ठ ५० के सामने (श्री उदयपुर, मेवाड़ के हस्तलिखित भण्डार से प्राप्त प्राचीन) श्री आगमपुरुष का चित्र
१८. वही, पृष्ठ १४ तथा ४९ के सामने वाला चित्र
१९. “दसवेयालियं उत्तरज्झयणं ।”
- कषायपाहुड ( जयधवला सहित ), भाग १, पृष्ठ १३/२५ २०. “दसवेयालं च उत्तरज्झयणं ।" - गोम्मटसार ( जीवकाण्ड), गाथा ३६७ २१. "से किं तं कालियं ? कालियं अणेगविहं पण्णत्तं तं जहा - उत्तरज्झयणाई
से किं तं उक्कालियं ? उक्कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा - दसवेयालियं
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- नंदीसूत्र ४३
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