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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन १०३ * -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.उत्प्रेरित किया। तथापि मुनि जी ने बहुत ही निष्ठा के साथ यह कार्य सम्पन्न किया है, इसलिए वे साधुवाद के पात्र हैं।
उत्तराध्ययन एक ऐसा विशिष्ट आगम है, जिसमें चारों अनुयोगों का सुन्दर समन्वय हुआ है। यद्यपि उत्तराध्ययन की परिगणना धर्मकथानुयोग में की गई है, क्योंकि इसके छत्तीस अध्ययनों में से चौदह अध्ययन धर्मकथात्मक हैं। प्रथम, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ और दशम ये छह अध्ययन उपदेशात्मक हैं। इन अध्ययनों में साधकों को विविध प्रकार से उपदेशात्मक प्रेरणाएँ दी गई हैं। द्वितीय, ग्यारहवाँ, सोलहवाँ, सत्तरहवाँ, चौबीसवाँ, छब्बीसवाँ, बत्तीसवाँ और पैंतीसवाँ अध्ययन आचारात्मक हैं। इन अध्ययनों में श्रमणाचार का गहराई से विश्लेषण हुआ है। अट्ठाईसवाँ, उनतीसवाँ, तीसवाँ, इकतीसवाँ, तेतीसवाँ, चौंतीसवाँ, छत्तीसवाँ ये सात अध्ययन सैद्धान्तिक हैं। इन अध्ययनों में सैद्धान्तिक विश्लेषण गम्भीरता के साथ हुआ है। छत्तीस अध्ययनों में चौदह अध्ययन धर्मकथात्मक होने से इसे धर्मकथानुयोग में लिया गया है। विषय-बाहुल्य होने के कारण प्रत्येक विषय पर बहुत ही विस्तार के साथ सहज रूप से लिखा जा सकता है। मैंने प्रस्तावना में न अतिसंक्षिप्त और न अतिविस्तृत शैली को ही अपनाया है। अपितु मध्यम शैली को आधार बनाकर उत्तराध्ययन में आये हुए विविध विषयों पर चिन्तन किया है। यदि विस्तार के साथ उन सभी पहलुओं पर लिखा जाता तो एक विराट्काय ग्रन्थ सहज रूप से बन सकता था।
उत्तराध्ययन की तुलना श्रीमद् भागवत गीता के साथ की जा सकती है। इस दृष्टि से प्रतिभामूर्ति पं. मुनि श्री सन्तबाल जी ने 'जैन दृष्टिए गीता' नामक ग्रन्थ में प्रयास किया है। इसी तरह कुछ विद्वानों ने उत्तराध्ययन की तुलना 'धम्मपद' के साथ करने का भी प्रयत्न किया है। समन्वयात्मक दृष्टि से यह प्रयास प्रशंसनीय है। पार्श्वनाथ शोध संस्थान, वाराणसी से उत्तराध्ययन पर 'उत्तराध्ययन : एक परिशीलन' के रूप में शोध प्रबन्ध भी प्रकाशित हुआ है। इस प्रकार उत्तराध्ययन पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, संस्कृत भाषाओं में अनेक टीकाएँ और उसके पश्चात् विपुल मात्रा में हिन्दी अनुवाद और विवेचन लिखे गये हैं, जो इस आगम की लोकप्रियता का ज्वलन्त उदाहरण हैं। प्रबुद्ध वर्ग इसका स्वाध्याय कर अपने जीवन को आध्यात्मिक आलोक से आलोकित करेंगे, यही मंगल मनीषा !
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