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* १०२ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
श्रमण-श्रमणियाँ उत्तराध्ययन को कंठस्थ करते हैं तथा प्रतिदिन उसका स्वाध्याय भी। इससे उत्तराध्ययन की महत्ता स्वयं सिद्ध है। उत्तराध्ययन के हिन्दी में पद्यानुवाद भी अनेक स्थलों से प्रकाशित हुए हैं। उनमें श्रमणसूर्य मरुधरकेसरी श्री मिश्रीमल जी म. तथा आचार्य श्री हस्तीमल जी म. के पद्यानुवाद पठनीय हैं। इस तरह आज तक उत्तराध्ययन पर अत्यधिक कार्य हुआ है। प्रस्तुत सम्पादन (आगम समिति, ब्यावर का)
उत्तराध्ययन के विभिन्न संस्करण समय-समय पर प्रकाशित होते रहे हैं और उन संस्करणों का अपने आप में विशिष्ट महत्त्व भी रहा है। प्रस्तुत संस्करण आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.) के अन्तर्गत प्रकाशित होने जा रहा है। इस ग्रन्थमाला के संयोजक और प्रधान सम्पादक हैं-श्रमणसंघ के युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म.। श्री मधुकर मुनि जी म. शान्त प्रकृति के मूर्धन्य मनीषी सन्तरल हैं। उनका संकल्प है-आगम-साहित्य को अधुनातन भाषा में प्रकाशित किया जाए। उसी संकल्प को मूर्तरूप देने के लिए ही स्वल्पावधि में अनेक आगमों के अभिनव संस्करण प्रबुद्ध पाठकों के कर-कमलों में पहुंच चुके हैं जिससे जिज्ञासुओं को आगम के रहस्य समझने में सहूलियत हो गई है। उसी पवित्र लड़ी की कड़ी में उत्तराध्ययन का यह अभिनव संस्करण है।
इस संस्करण की यह मौलिक विशेषता है कि इसमें शुद्ध मूल पाठ है, भावानुवाद है और साथ ही विशेष स्थलों पर आगम के गम्भीर रहस्य को स्पष्ट करने के लिए प्राचीन व्याख्या-साहित्य के आधार पर सरल और सरस विवेचन भी है। विषय गम्भीर होने पर भी प्रस्तुतीकरण सरल और सुबोध है। इसके सम्पादक, विवेचक और अनुवादक हैं-श्री राजेन्द्र मुनि साहित्यरत्न, शास्त्री, काव्यतीर्थ, 'जैन सिद्धान्ताचार्य', जो परम श्रद्धेय, राजस्थानकेसरी, अध्यात्मयोगी, उपाध्याय पूज्य सद्गुरुवर्य श्री पुष्कर मुनि जी म. के प्रशिष्य हैं, जिन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं में लिखा है। उनका आगम सम्पादन का यह प्रथम प्रयास प्रशंसनीय है। यदि युवाचार्यश्री का अत्यधिक आग्रह नहीं होता तो सम्भव है, इस सम्पादन-कार्य में और भी अधिक विलम्ब होता। पर युवाचार्यश्री की प्रबल प्रेरणा ने मुनि जी को शीघ्र कार्य सम्पन्न करने के लिए
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