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________________ उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन १०१. अहमदाबाद से गुजराती अनुवाद टिप्पणों के साथ एक से अठारह अध्ययन प्रकाशित हुए। सन् १९५४ में जैन प्राच्य विद्या भवन, अहमदाबाद से गुजराती अर्थ एवं धर्मकथाओं के साथ एक से पन्द्रह अध्ययन प्रकाशित हुए। संवत् १९९२ में मुनि सन्तबाल जी ने भी गुजराती अनुवाद प्रकाशित किया। वीर संवत् २४४६ में आचार्य अमोलक ऋषि जी ने हिन्दी अनुवाद सहित उत्तराध्ययन का संस्करण निकाला। वीर संवत् २४८९ में श्री रतनलाल जी डोशीसैलाना ने तथा विक्रम संवत् २०१० में पं. घेवरचन्द जी बांठिया, बीकानेर ने एवं विक्रम संवत् १९९२ में श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस, बम्बई द्वारा मुनि सौभाग्यचन्द्र सन्तबाल जी ने हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करवाया। सन् १९३९ से १९४२ तक उपाध्याय श्री आत्माराम जी म. ने जैनशास्त्रमाला कार्यालय, लाहौर से उत्तराध्ययन पर हिन्दी में विस्तृत विवेचन किया। उपाध्याय श्री आत्माराम जी म. का यह विवेचन भावपूर्ण, सरल और आगम के रहस्य को स्पष्ट करने में सक्षम है। सन् १९६७ में मुनि नथमल जी ने मूल, छाया, अनुवाद, टिप्पणयुक्त अभिनव संस्करण श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, कलकत्ता से प्रकाशित किया है। इस संस्करण के टिप्पण भावपूर्ण हैं। सन् १९५९ से १९६१ तक पूज्य श्री घासीलाल जी म. ने उत्तराध्ययन पर संस्कृत टीका का निर्माण किया था। वह टीका हिन्दी, गुजराती अनुवाद के साथ जैनशास्त्रोद्धार समिति, राजकोट से प्रकाशित हुई। सन्मति ज्ञान पीठ, आगरा से साध्वी श्री चन्दना जी ने मूल व भावानुवाद तथा संक्षिप्त टिप्पणों के साथ उत्तराध्ययन का संस्करण प्रकाशित किया है। उसका श्री दुर्लभ जी केशव जी खेताणी द्वारा गुजराती में अनुवाद भी बम्बई से प्रकाशित हुआ है। ___ आगम-प्रभावक श्री पुण्यविजय जी म. ने प्राचीनतम प्रतियों के आधार पर विविध पाठान्तरों के साथ जो शुद्ध आगम संस्करण महावीर विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित करवाये हैं उनमें उत्तराध्ययन भी है। धर्मोपदेष्टा श्री फूलचन्द जी म. ने 'मूलसुत्तागमे' में, मुनि श्री कन्हैयालाल जी कमल ने 'मूलसुत्ताणि' में, महासती श्री शीलकुँवर जी ने 'स्वाध्याय सुधा' में और इनके अतिरिक्त पन्द्रह-बीस स्थानों से मूल पाठ प्रकाशित हुआ है। आधुनिक युग में शताधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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