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________________ उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ९७* -.-.-.-.-.-.-.-. अर्थात् तू राई के बराबर दूसरों के दोषों को तो देखता है पर बिल्व जितने बड़े स्वयं के दोषों को देखकर भी नहीं देखता है। "सुहिओ हु जणो न बुज्झई।' अर्थात् सुखी मनुष्य प्रायः जल्दी नहीं जाग पाता। “भावंमि उ पव्वजा, आरम्भपरिग्गहचाओ।" अर्थात् हिंसा और परिग्रह का त्याग ही वस्तुतः भाव-प्रव्रज्या है। उत्तराध्ययनभाष्य नियुक्तियों की व्याख्या शैली बहुत ही गूढ़ और संक्षिप्त थी। नियुक्तियों का लक्ष्य केवल पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना था। नियुक्तियों के गुरु गम्भीर रहस्यों को प्रकट करने के लिए भाष्यों का निर्माण हुआ। भाष्य भी प्राकृत भाषा में ही पद्य रूप में लिखे गये। भाष्यों में अनेक स्थलों पर मागधी और सौरसेनी के प्रयोग भी दृष्टिगोचर होते हैं। उनमें मुख्य छन्द आर्या है। उत्तराध्ययनभाष्य स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में उपलब्ध नहीं है। शान्तिसूरि जी की प्राकृत टीका में भाष्य की गाथाएँ मिलती हैं। कुल गाथाएँ ४५ हैं। ऐसा ज्ञात होता है कि अन्य भाष्यों की गाथाओं के सदृश इस भाष्य की गाथाएँ भी नियुक्ति के पास मिल गई हैं। प्रस्तुत भाष्य में बोटिक की उत्पत्ति, पुलाक, बवुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक आदि निर्ग्रन्थों के स्वरूप पर प्रकाश डाला है। उत्तराध्ययनचूर्णि भाष्य के पश्चात् चूर्णि-साहित्य का निर्माण हुआ। नियुक्ति और भाष्य पद्यात्मक हैं तो चूर्णि गद्यात्मक है। चूर्णि में प्राकृत और संस्कृत मिश्रित भाषा का प्रयोग हुआ है। उत्तराध्ययनचूर्णि उत्तराध्ययननियुक्ति के आधार पर लिखी गई है। इसमें संयोग, पुद्गल बंध, संस्थान, विनय, क्रोधावरण, अनुशासन, परीषह, धर्मविघ्न, मरण, निर्ग्रन्थ-पंचक, भयसप्तक, ज्ञान-क्रिया, एकान्त प्रभृति विषयों पर उदाहरण सहित प्रकाश डाला है। चूर्णिकार ने विषयों को स्पष्ट करने के लिए प्राचीन ग्रन्थों के उदाहरण भी दिए हैं। उन्होंने अपना परिचय देते हुए स्वयं को वाणिज्यकुलीन कोटिकगणीय, वज्रशाखी, गोपालगणी महत्तर का अपने आपको शिष्य कहा है।३२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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