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________________ १२ आ टीकार्नु संशोधन श्रीमाणिक्य सुन्दरसूरिजीए कर्तुं छे एम टीकाकारे टीकानी प्रशस्तिना पांचमा लोकमां तथा प्रत्येक सर्गना अन्तमां उल्लिखित कयुं छे. श्री माणिक्यसुन्दरसूरिजी काव्यकार श्रीजयशेखरसूरिजीना लघुगुरुभ्राता श्री मेरुतुङ्गसूरिजीना शिष्य छे. तेमणे पण संस्कृत गुजराति गद्य आदिमां अनेक कृतिओ रची छे प्रस्तावना प्रस्तुत संस्करण: आ ग्रंथना नीचे मुजब वे संस्करण आ प्रकाशन पहेलां छपाई गयां छे. श्रावक भीमसी माणेक तरफथी प्रकरणरत्नाकरना भागमां केवळ मूल अने तेनुं पं. हीरालाल हंसराजे करेलं गुजराती भाषावतरण घणां वर्षो अगाउ मुद्रित थयुं छे. बीजुं संस्करण जामनगरनी 'आर्यरक्षितपुस्तकोद्धार संस्था' तरफथी गत वर्ष - मांज प्रकाशन पाम्युं छे. तेमां धर्मशेखरसूरिजी कृत टीका पण मुद्रित थई छे. परंतु ते अने अहिं प्रकाशन पामती टीका एकज होवा छतां केटलाक स्थलोए फेरफारवाली छे. आ फेरफार, संभव छे के, प्रतिना कोई वांचके कर्यो होय अथवा तो प्रस्तुत संस्करणना संपादके कर्यो होय. उक्त संस्करण मुद्रित थई रह्युं हशे त्यारेज स्व० विद्वान् आचार्य श्री विजयक्षमा भद्रसूरिजी महाराजे, प्रस्तुत वांचको समक्ष रजु १ वधु परिचय माटे जुओ: मो. द. देसाईकृत जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002970
Book TitleJain Kumar Sambhava Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmshekharsuri, Jayshekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size13 MB
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