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________________ प्रस्तावना थता संस्करण- संपादन शरु कयु हतुं. हुं मार्नु छ के, तेमने जामनगरनी उक्तसंस्था तरफथी थई रहेला प्रकाशननी जाण नहीं होय तेथीज तेमणे आ शरु कयु हशे. जो आपणी पुस्तकप्रकाशन संस्थाओ एक बीजाना सहकारथी अने पोतानी प्रवृत्तिओनी अन्योन्य माहिती आपवा पूर्वक कार्य करे तो एकजातनां कार्यो पाछळनो श्रम, शक्ति अने द्रव्यनो दुरुपयोग थतो अटके अने अन्य उपयोगी कार्यों थई शके. ___ कमभाग्ये, आ प्रकाशनना अढार फोर्म ( २८८ ... ८ सर्ग) मुद्रित थया पछी, विद्वान आचार्य श्रीविजयक्षमाभद्रसूरिजी महाराज वढवाण केम्प (काठीयावाड) मां वि. सं. २००० ना आषाढ शुक्ल एकमना अमंगल प्रभाते विकराल कालना दुरुच्छेद पंजामां बेतालीस वर्षनी उमरे अनेक धर्मसेवा अने श्रुतसेवा करवानी भावना साथे सपडाई गया अने परिणामे आ पुस्तक- मुद्रण त्यांथीज अटकी पड्यु. पूज्य व्याख्यान वाचस्पति कविकुलकिरीट गुरुदेव श्री विजय लब्धिसूरीश्वरजी महाराजानी शुभनिष्ठा मां गत चातुर्मास अत्र थयुं दरमियान शेठ देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंडना ट्रस्टीओ श्री हीराचंद कस्तुरचंद झवेरी अने श्री बाबुभाई प्रेमचंद झवेरीए अधुरा रहेला आ कार्यने संपूर्ण करी आपवानुं कहेतां में आ कार्य हाथ धयु. संशोधन माटे कोई हस्तप्रतो मने आपी नथी, पू. क्षमाभद्रसूरि महाराजे तैयार करेल प्रेस कॉपीना आधारेज में आ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002970
Book TitleJain Kumar Sambhava Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmshekharsuri, Jayshekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size13 MB
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