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________________ प्रस्तावना १८ त्रिभुवनदीपकप्रबन्ध १९ नेमिनाथफागु (५८ कडीनो छे.) आ सिवाय केटलांक स्तवनो बनाव्यानो उल्लेख मले छे. टीका अने टीकाकारः आ ग्रन्थमां, काव्यकारना आशयने स्पष्ट करती काव्यकारना ज शिष्य श्री धर्मशेखरसूरिजी कृत टीका पण साथैज मुद्रित थई छे. अभ्यासिवर्गने काव्यकारनो आशय समजवामां सरलता पडे अने प्राथमिक अभ्यासियो पण लाभ लई शके ए हेतुथी टीकाकार महर्षिए टीकाने घणीज सरळ करी छे. टीकाकार पोतेज, टीकानी शरुआतमां, टीकानी रचनाने उद्देशीने लखे छे के 'अत्र ग्रन्थे च कापि समासं कृत्वा व्याख्या करिष्यते, कापि पर्यायमात्रमेव प्रोच्य व्याख्या करिष्यते' आ पोतानी करेली प्रतिज्ञा मुजब संक्षेपमां पण स्पष्टार्थावबोधक टीका करी छे. __टीकाकारे टीकानी रचना सं. १४८३ मां, संपादलक्षदेशमां, षदपुर नामना नगरमां करी छे. आ सिवाय तेमणे पोताना विषे कशोज उल्लेख प्रशस्तिमां कों नथी. तेमज अन्य ग्रन्थोमां पण तेमना विषेनो उल्लेख हजी सुधी मारा जोवामां आव्यो नथी. १ आ ग्रन्थ पोताना प्रबोधचिन्तामणिनो काव्यमय अनुवाद छे. परमहंसप्रबन्ध, प्रबोधचिंतामणि चौपाई, अंतरंग चौपाई आदि पण तेना नामो छे. २ जुओः प्रशस्तिश्लोक नं. ४-६ आजना अजमेर (मारवाड) ना आसपासनो प्रदेश. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002970
Book TitleJain Kumar Sambhava Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmshekharsuri, Jayshekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1916
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size13 MB
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