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श्रीमद्रावचन्द्र जैनसानमालायाम् । अत्र द्रव्यपर्यायाणाममेदो निर्दिष्टः
पजविजुदं दवं दबविजुचा य पजया णस्थि । दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूविति ॥१२॥ पर्ययवियुतं द्रव्यं द्रव्यवियुक्ताश्च पर्याया न सन्ति ।
द्वयोरनन्यमूतं मावं श्रमणाः प्ररूपयन्ति ॥१२॥ दुग्धदधिनवनीतघृतादिवियुतगोरसवत्पर्यायवियुतं द्रव्यं नास्ति । गोरसवियुक्तदुग्धदधिनवनीतघृतादिवद्व्यवियुक्ताः पर्यायान सन्ति । ततो द्रव्यस्य पर्यायाणाश्चादेशवशात्पर्यायेण परिणतं सहितं शुद्धजीवास्तिकायसंज्ञं शुद्धजीवद्रव्यमेवोपादेयमिति सूत्रतात्पर्य ॥१२॥ एवं द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकलक्षणनयद्वयव्याख्यानेन सूत्रं गतं । अथ द्रव्यपर्यायाणां निश्चयनयेनाभेदं दर्शयति;-पजयरहिय दव्यं दधिदुग्धादिपर्यायरहितगोरसवत्पर्यायरहितं द्रव्यं नास्ति । दव्यविमुत्ता य पन्जया णन्थि गोरसरहितदधिदुग्धादिपर्यायवत् द्रव्यविमुक्ता द्रव्यविरहिताः पर्याया न सति । दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परुर्वेति यत एवमभेदनयेन द्रव्यपर्याययोदो नास्ति तत एव कारणात् द्वयोव्यपर्याययोरनन्यमूतमभिन्नभावं सत्तमस्तित्वस्वरूपं प्ररूपयन्ति । के कथयन्ति । श्रमणा महाश्रमणाः सर्वज्ञा इति । अथवा द्वितीयव्याख्यानं-द्वयोर्द्रव्यपाययोरनन्यभूतमभिन्नभावं पदार्थ वस्तु श्रमणाः प्ररूपयन्ति । भावशब्देन कथं पदार्थो भण्यत इति चेत् । द्रव्यपर्यायात्मको भावः पदार्थो वस्त्विति वचनात् । अत्र सिद्धरूपशुद्धपर्यायामिन्नं है और पर्यायार्थिकनयसे उपजै और विनशै भी है। इस प्रकार द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक दो नयोंके भेदसे द्रव्यस्वरूप निराबाध सधै है । ऐसा ही अनेकान्तरूप द्रव्यका स्वरूप मानना योग्य है ॥ ११ ॥ आगे-यद्यपि द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयोंके भेदसे द्रव्यमें भेद है तथापि अभेद दिखाते हैं;-[ पर्ययवियुतं ] पर्यायरहित [ द्रव्यं न ] द्रव्य ( पदार्थ ) नहीं है [च ] और [ द्रयविमुक्ताः ) द्रव्यरहित [ पर्यायाः ] पर्याय [न सन्ति । नहीं हैं । श्रमणाः ] महामुनि जे हैं ते [ द्वयोः ] द्रव्य और पर्यायका [ अनन्यभूतं भावं ] अभेद स्वरूप [ प्ररूपयन्ति ] कहते हैं । भावार्थजैसे गोरस अपने दूध दही घी आदिक पर्यायोंसे जुदा नहीं है, उसी प्रकार द्रव्य अपनी 'पर्यायोंसे जुदा ( पृथक ) नहीं है और पर्याय भी द्रव्यसे जुदे नहीं हैं। इसी प्रकार द्रव्य और पर्याय की एकता है। यद्यपि कथंचिव प्रकार कथनकी अपेक्षा समझाने के लिये भेद है तथापि वस्तुस्वरूपके विचारते भेद नहीं है। क्योंकि द्रव्य और पर्यायका परस्पर एक अस्तित्व है। जो द्रव्य न होय तो पर्यायका अभाव हो जाय और पर्याय नहीं होय तो व्यका अभाव हो जाय । जिस प्रकार दुग्धादि पर्यायके अभावसे गौरसका अभाव है और गौरसके अभावसे दुग्धादि पर्यायोंका अभाव होता है । इसी प्रकार इन दोनों
१ निश्ववनयेन. २ राहतम्. ३ द्रव्यरहिताः ।
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