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________________ श्रीमद्रराजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । च्चोत्पादव्ययध्रौव्यवच्चेति । सद्धि नित्यानित्यस्वभावत्वाद्ध्रुवत्वमुत्पादव्ययात्मकताञ्च प्रथयति । ध्रुवत्वात्मकैर्गुणैरुत्पादव्ययाद् व्ययात्मकः पर्यायैश्व सहैकत्वञ्चाख्याति । उत्पादoreaौव्याणि तु नित्यानित्यस्वरूपं परमार्थं सदा वेदयन्ति । गुणपर्यायांश्चात्मलाभनिबन्धनभूतान् प्रथयन्ति | गुणपर्यायास्त्वन्वयव्यतिरेकित्वा‌द्ध्रौव्योत्पत्तिविनाशान् सूचयन्ति, नित्यानित्यस्वभावं परमार्थं सच्चोपलक्षयन्ति ॥ १०॥ २६ त्युक्ते सत्युत्पादव्ययध्रौव्यलक्षणत्वं सत्तालक्षणं च नियमेन लभ्यते । एकस्मिल्लक्षणेऽभिहिते सत्यन्यलक्षणद्वयं कथं लभ्यत इति चेत्, त्रयाणां लक्षणानां परस्पराविनाभावित्वादिति । अथ मिथ्यात्वरागादिरहितत्वेन शुद्धसत्तालक्षणं अगुरुलघुत्व षड्ढानिवृद्धिरूपेण शुद्धोत्पादव्ययधौव्यलक्षणं अकृतज्ञाद्यनन्तगुणलक्षणं सहजशुद्धसिद्धपर्यायलक्षणं च शुद्धजीवास्तिकायसंज्ञं शुद्धजीवद्रव्यमुपादेयमिति भावार्थ: । क्षणिकैकान्तरूपं बौद्धमतं नित्यैकान्तरूपं सांख्यमतं उभयैकान्तरूपं नैयायिकमतं मीमांसकमतं च सर्वत्र मतान्तरव्याख्यानकाले ज्ञातव्यं । क्षणिकैकान्ते किं दूषणं १ ये घटादिक्रिया प्रारब्धा स तस्मिन्नेव क्षणे गतः क्रियानिष्पत्तिर्नास्तीत्यादि । नित्यैकान्ते च योऽसौ तिष्ठति स तिष्ठत्येव, सुखी सुख्येव, दुःखी दुख्येवेत्यादिटं कोत्कीर्णनित्यत्वेन पर्यायान्तरं न घटते, परस्परनिरपेक्षद्रव्यपर्यायोभयैकान्ते पुनः पूर्वोक्तदूषणद्वयमपि प्राप्नोति । जैनमते पुनः परस्परसापेक्षद्रव्यपर्यायत्वान्नास्ति दूषणं ॥ १० ॥ इति तृतीयस्थले द्रव्यस्य सत्तालक्षणत्रयसूचनकरके विनाशक हैं वे पर्याय हैं । ये द्रव्योंमें गुण और पर्याय कथंचित् प्रकारसे अभेद रूप हैं और कथंचित्प्रकार भेद लिये हैं । संज्ञादि भेदकर तो भेद है, वस्तुतः अभेद है । यह जो पहिले ही तीन प्रकार द्रव्यके लक्षण कहे, उसमेंसे जो एक ही कोई लक्षण कहा जाय तो शेषके दो लक्षण भी उसमें गर्भित हो जाते हैं । यदि द्रव्यका लक्षण सत् कहा जाय तो उत्पाद व्यय धौव्य और गुणपर्यायवान् दोनों ही लक्षण गर्भित होते हैं, क्योंकि जो 'सद' है सो नित्य अनित्यस्वरूप है नित्य स्वभावमें धौव्यता आती है । अनित्य स्वभावमें उत्पाद और व्यय आता है । इस प्रकार उत्पादव्ययधौन्य सवलक्षणके कहनेसे आते हैं और गुणपर्याय लक्षण भी आता है । और धन्यता आती है और पर्यायके कहते उत्पाद व्यय आते हैं । और इसी प्रकार उत्पादव्ययधौव्य लक्षण कहनेसे सवलक्षण आता है | गुणपर्याय लक्षण भी आता है । और गुणपर्याय द्रव्यका लक्षण कहते सवलक्षण आता है और उत्पादव्ययधौव्य लक्षण भी आता है, क्योंकि - द्रव्य नित्य अनित्यस्वरूप है । लक्षण नित्य अनित्य स्वरूपको सूचन करता है । इस कारण इन तीनों ही लक्षणों में सामान्य विशेषता करके तो भेद है, वास्तवमें कुछ भी भेद नहीं है ॥ १० ॥ आगे द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक नयोंके भेदकर १. कथयति. २ कर्तृणि. ३ विस्तारयन्ति ४ दर्शयन्ति अवबाधयन्ति वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002941
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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