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पञ्चास्तिकायः ।
माव इति उत्पादव्ययधौव्याणि वा द्रव्यलक्षणं । एकजात्यविरोधिनि क्रमभुवां भावानां संताने पूर्वभावविनाशः समुच्छेद उत्तरमावप्रादुर्भावश्च समुत्पादः । पूर्वोत्तरमावोच्छेदोत्पादयोरपि स्वजातेरपरित्यागो धौव्यं । तानि सामान्यादेशादभिन्नानि विशेपादेशाद्भिन्नानि युगपद्भावीनि स्वभावभूतानि द्रव्यस्य लक्षणं भवन्तीति । गुणपर्याया वा द्रव्यलक्षणं । अनेकान्तात्मकस्य वस्तुनोऽन्वयिनो विशेषा गुणाः व्यतिरेकिणः पर्यायास्ते द्रव्ये योगपद्येन क्रमेण च प्रवर्तमानाः कथञ्चिद्भिन्नाः स्वभावभूताः द्रव्यलक्षणतामापद्यन्ते । त्रयाणामप्यमीषां द्रव्यलक्षणानामेकैस्मिन्नभिहितेऽन्यदुमयमर्थादेवापद्यते । सच्चेदुत्पादव्ययधौव्यवच्च गुणपर्यायवञ्च । उत्पादव्ययध्रौव्यवच्चेत्सच्च गुणपर्यायवञ्च । गुणपर्यायवच्चेसदव्ययधोव्यसंयुक्त पर्यायार्थिकनयेन गुणपजयासयं वा गुणपर्यायाधारभूतं वा सांख्यनैयाथिकं प्रति जं तं भण्णंति सव्वण्हू यदेवं लक्षणत्रयसंयुक्त सद्व्यं भणंति सर्वज्ञा इति वार्तिकं तवाहि-सत्तालक्षणमित्युक्त सत्युत्पादव्ययध्रौव्यलझणं गुगपर्यायवल झणं च नियमेन लभ्यते उत्पादव्ययत्रौव्ययुक्तमित्युक्त सत्तालक्षणं गुणपर्यायत्वलझणं च नियमेन लभ्यते गुणपर्यायवदिरक्षण कहते हैं। [वा ] अथवा [ गुणपर्यायाश्रयं ] गुणपर्यायका जो आधार है, उसको द्रव्यका लक्षण कहते हैं। भावार्थ-द्रव्यके तीन प्रकारके लक्षण हैं। एक तो द्रव्यका सत्तालक्षण है, दूसरा उत्पादव्ययध्रौव्यसंयुक्तलमण है, तीसरा गुणपर्यायाश्रित लक्षण है। इन तीनों ही लक्षणोंमें पहिले पहिले लक्षण सामान्य हैं अगले अगले विशेष हैं. सो दिखाया जाता है। जो प्रथम ही सवलक्षण कहा, वह तो सामान्य कथनकी अपेक्षा द्रव्यका लम्प जानना । द्रव्य अनेकान्त स्वरूप है। द्रव्यका सर्वथा प्रकार सत्ता ही लक्षण है। इस प्रकार कहनेसे लक्ष्य लझणमें भेद नहीं होता। इस कारण द्रव्यका लमण उत्पादव्ययध्रौव्य भी जानना । एक वस्तुमें अविरोधी जो क्रमवर्ती पर्याय हैं, उनमें पूर्व भावोंका विनाश होता है. अगले मावोंका उत्पाद होता है. इस प्रकार उत्पादव्ययके होते हुए भी द्रव्य अपने निजस्वरूपको नहीं छोड़ता है, वही ध्रौव्य है । ये उत्पादव्ययध्रौव्य ही द्रव्यके लझण हैं । ये तीनों भाव सामान्य कथन की अपेक्षा द्रव्यसे मित्र नहीं है। विशेष कथनकी अपेक्षा द्रव्यसे भेद दिखाया जाता है। एक ही समयमें ये तीनों भाव होते हैं, द्रव्यके स्वाभाविक लक्षण हैं । उत्पादव्ययध्रौव्य द्रव्यका विरोष लक्षण है। इस प्रकार सर्वथा कहा नहीं जाता, इस कारण गुणपर्याय भी द्रव्य का लक्षण है। कारण कि-द्रव्य अनेकान्तस्वरूप है। अनेकान्त तब ही होता हैजब कि द्रव्यमें अनन्तगुणपर्याय हों । इस कारण गुण और पर्याय द्रव्यके विशेष स्वरूपको दिखाते हैं। जो द्रव्यसे सहमूतताकर अविनाशी हैं वे तो गुण हैं, जो क्रमवर्ती
१ गुणपर्यायाः. २ द्रव्यस्य लक्षणभूताः. ३ प्राप्नुवन्ति. ४ सत्ता, उत्पादव्ययध्रौव्यत्वं, गुणपर्यायत्वं चेति त्रयाणाम. ५ लक्षणे. ६ कथ्यते. ७ अर्थानूसारात ।
४ पश्चा०
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