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________________ पञ्चास्तिकायः। पदार्थसार्थव्यापिनी सादृश्यास्तित्वसूचिका महासत्ताप्रोक्तव । अन्या तुप्रतिनियमवस्तुवर्तिनी स्वरूपास्तित्वसूचिकाऽवान्तरसत्ता । तत्र महासत्ताऽवान्तरसत्तारूपेणाऽसत्ताऽवान्तरसत्ता च महासत्तारूपेणाऽसत्तेत्यसत्ता सत्तायाः । येन स्वरूपेणोत्पादस्तत्तथोत्पादै कलक्षणमेवयेन स्वरूपेणोच्छेदस्तत्तथोच्छेदैकलक्षणमेव येन स्वरूपेण ध्रौव्यं तत्तथा ध्रौव्यैकलक्षणमेव तत उत्पद्यमानोच्छिद्यमानाऽवतिष्ठमानानां वस्तुनः स्वरूपाणां प्रत्येकं त्रैलक्षण्याभावादविलक्षणत्वं त्रिलक्षणायाः । एकस्य वस्तुनः स्वरूपसत्ता नान्यस्य वस्तुनः स्वरूपसत्ता भवतीत्यनेकत्वमेकस्याः । प्रतिनियतपदार्थस्थिताभिरेव सत्ताभिः पदार्थानां प्रतिनियमो भवतीत्येकपदार्थस्थितत्वं सर्वपदार्थस्थितायाः । प्रतिनियतैकरूपाभिरेव सत्ताभिः प्रतिनियतैभङ्गोत्पादध्रौव्यात्मिका । पुनश्च किं विशिष्टा । एका महासत्तारूपेणैका । एवं पंचविशेषणविशिष्टा सत्ता किं निरंकुशा निःप्रतिपक्षा भविष्यति । नैवं । सप्पडिवक्खा सप्रतिपक्षैवेति वार्तिकं । तथाहि-स्वद्रव्यादिचतुष्टयरूपेण सत्तायाः परद्रव्यादिचतुष्टयरूपेणासत्ता प्रतिपक्षा, सर्वपदार्थस्थितायाः सत्तायाः एकपदार्थस्थिता प्रतिपक्षः, मूर्तो घटः सौवर्णो घटः ताम्रो घट इत्यादिरूपेण सविश्वरूपाया नानारूपाया एकघटरूपा सत्ता प्रतिपक्षः, अथवा विवक्षितैकघटे वर्णाकारादिरूपेण विश्वरूपायाः सत्ताया विवक्षितैकगन्धादिरूपा प्रतिपक्षः, कालत्रयापेक्षयानन्तपर्यायायाः सत्ताया विवक्षितकपर्यायसत्ता प्रतिपक्षः, उत्पादव्ययध्रौव्यरूपेण त्रिलक्षणायाः सत्ताया विवक्षितैकस्योत्पादस्य वा व्ययस्य वा ध्रौव्यस्य वा सत्ता प्रतिपक्षः, एकस्या महासत्ताया व्यात्मिका ] उत्पादव्ययध्रौव्यस्वरूप है [सप्रतिपक्षा ] प्रतिपक्षसंयुक्त है । भावार्थ-जो अस्तित्व है सो ही सत्ता है। जो सत्ता लिये है वही वस्तु है । वस्तु नित्य अनित्य स्वरूप है। यदि वस्तु को सर्वथा नित्य ही माना जाय तो सत्ताका नाश हो जाय, क्योंकि नित्य वस्तुमें क्षणवर्ती पर्यायके अभावसे परिणामका अभाव होता है. परिणाम के अभावसे वस्तुका अभाव होता है। जैसे मृत्पिडादिक पर्यायों के नाश होनेसे मृत्तिकाका नाश होता है। कदाचित् वस्तुको क्षणिक ही माना जाय तो यह वस्तु वही है जो मैंने पहिले देखी थी; इस प्रकारके ज्ञानका नाश होनेसे वस्तुका अभाव हो नायगा. इस कारण यह वस्तु वही है जो मैंने पहिले देखी थी, ऐसे ज्ञान के निमित्त वस्तुको ध्रौव्य (नित्य ) मानना योग्य है । जैसे बालक युवा वृद्धावस्थामें पुरुष पहा नित्य रहता है, उसी प्रकार अनेक पर्यायों में द्रव्य नित्य है। इस कारण वस्तु नित्य अनित्य स्वरूप है, और इसीसे यह बात सिद्ध हुई कि, वस्तु जो है सो उत्पादव्ययध्रौव्यस्वरूप है. पर्यायोंकी अनित्यताकी अपेक्षासे उत्पादव्ययरूप है, और गुणोंको नित्यता होमकी अपेक्षा ध्रौव्य है, इस प्रकार तोन अवस्थाको लिये वस्तु सत्तामात्र होती है । सत्ता उत्पादव्यपध्रौव्यस्वरूप है । यद्यपि नित्य अनित्यका भेद है, तथापि १ अवान्तरसता. २ एकमे कस्वां प्रति विलक्षणस्वाभावात ३ निश्चयः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002941
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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