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* ॐ नमः
प्रस्तावना ।
जासके मुखारविंदतें प्रकास भास वृन्द,
स्यादवाद जैनवैन इंदु कुन्दकुन्दसे । तासके अभ्यासतें विकास भेदज्ञान होत,
मूढ़ सो लखै नहीं कुबुद्धि कुन्दकुन्दसे ॥ देत हैं असीस सीस नाय इंद चंद जाहि,
___ मोह-मार-खंड-मारतंड कुन्दकुन्दसे। सुद्ध-बुद्धि-वृद्धिदा प्रसिद्ध-रिद्धि-सिद्धिदा, हुए न हैं न होहिंगे मुनिव कुन्दकुन्दसे ॥
(कविवर वृन्दावन)
आजसे २४३१ वर्ष पहिले अर्थात् सन् ईसवीसे ५२७ वर्ष पहिले इस भारतवर्षकी पुण्यभूमि में विपुलाचल पर्वत पर जगत्पूज्य परमभट्टारक भगवान् श्रा १०८ महावीर ( वर्द्धमान) स्वामी मोक्ष मार्गका प्रकाश करनेके लिये समस्त पदार्थोंका स्वरूप अपनी सातिशय दिव्यध्वनि द्वारा प्रगट करते थे। उस समय निकटवर्ती अगणित ऋषि मुनियों द्वारा वंदनीय सप्तऋद्धि और चार ज्ञानके धारक श्रीगौतम (इन्द्रभूति ) नामा गणधरदेव भगवद्भाषित समस्त अर्थको धारण करके द्वादशांग श्रुतरूप रचना करते थे। श्रीवर्द्धमानस्वामीके मोक्ष पधारनेके पश्चात् उक्त गौतम स्वामी १ सुधर्माचार्य २ और जम्बूस्वामी ३ ये तीन केवलज्ञानी हुये, सो ६२ वर्ष पर्यन्त श्रीवर्धमान तीर्थंकर भगवान् के समान ही मोक्षमार्गकी यथार्थ प्ररूपणा ( उपदेश) करते रहे। इनके पश्चात् क्रमसे विष्णु १ नंदिमित्र २ अपराजित ३ गोवर्धन ४ और भद्रबाहु ५ ये पांच श्रुतकेवली द्वादशांगके पारगामी हुये । इन्होंने एकसौ वर्ष पर्यन्त केवली भगवान् के समान ही यथार्थ मोक्षमार्गका उपदेश किया । इनके पश्चात् विशाखाचार्य १ पौष्टिलाचार्य २ क्षत्रिय ३ जयसेन ४ नागसेन ५ सिद्धार्थ ६ धृतिषण ७ विजय ८ बुद्धिमान् ९ गंगदेव १० धर्मसेन ११ ये ग्यारह मुनि ग्यारह अंग और दश पूर्वके धारक क्रमसे हुये, सो ये भी एकसौ तियासी वर्ष तक मोक्षमार्गका यथार्थ उपदेश देते रहे । इनके पश्चात् नक्षत्र १ जयपाल २ पांडु ३ ध्रुवसेन ४ कशाचार्य ५ ये पांच महामुनि ग्यारह अंगमात्रके पाठी अनुक्रमसे दोयसौ बीस वर्ष में हुये। इनके पश्चात् सुभद्र १ यशोधर २ महायश ३ लोहाचार्य ४ ये चार मुनि एक अंगके पाठी अनुकमसे ११८ वर्षमें हुये।
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