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प्रकाशकीय निवेदन
श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यरचित इस 'पंचास्तिकाय' नामक-ग्रन्थका प्रकाशन अनेक जैन संस्थाओंकी ओरसे समय समय पर होता रहा है, परन्तु परमश्रुतप्रभावक-मण्डलकी ओर से प्रस्तुत ग्रन्थकी यह तीसरी आवृत्ति है। मूलग्रन्थ आचार्यश्रीने प्राकृत भाषाकी १७३ गाथाओं में रचा है, जिस पर श्रीमदमृतचन्द्राचार्यने 'समयव्याख्या' ( तत्त्वप्रदीपिकावृत्ति) और श्रीमज्जयसेनाचार्यने 'तात्पर्यवृत्ति' नामक अर्थगंभीर समृद्ध टीकाओंकी रचना संस्कृत भाषामें की। प्राचीन हिन्दी भाषामें कई विद्वानोंने टीकाएं लिखी हैं जिनमें श्री पांडे हेमराजजी ने जो बालावबोध भाषा-टीका लिखी, उसीके आधार पर वीर नि० सं० २४३१ ( ई० सन् १९०४ ) में सुजानगढ़ निवासी श्रीमान् पं० पन्नालालजी बाकलीवालकृत प्रचलित हिन्दी अनुवाद हुआ था। उस समय हमारी प्रथम आवृत्ति छपी थी। दूसरी आवृत्ति के समय वीर निर्वाण सं० २४४१ में श्री पं० मनोहरलालजी शास्त्रीने हमें अनुवादके संशोधनकार्यमें सहयोग दिया था, और अब वही संशोधित सामग्री पुनः विशेष सावधानीके साथ श्री पं० परमेष्ठीदासजी न्यायतीर्थकृत नवीन हिन्दी भाषामें प्रकाशित की जा रही है ।
परमश्रुतप्रभावक-मण्डल (श्रीमद्रराजचन्द्र जैन शास्त्रमाला) की ओरसे अनेक सद्ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है, और अभी भी जो ग्रन्थ अप्राप्य हो गये हैं उन्हें क्रमशः पुनः छपाने का हमारा प्रयास चालू है। आशा है, पाठकजन इन ग्रन्थोंका पूरा लाभ उठाकर हमें निर्ग्रन्थप्रवचनकी सेवाका अवसर देते रहेंगे ।
अन्तमें, जिन जिन महानुभावोंका हमें प्रत्यक्ष या परोक्षरूपसे सहयोग मिला है, हम उन सभीका हृदयसे आभार मानते हैं ।
श्रीमदुराजचन्द्र आश्रम, अगास वीर निर्वाण सं. २४९५. वि.सं. २०२५ ईस्वी सन् १९६९
निवेदकरावजीभाई देसाई.
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