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श्रीमद्राजचन्द्रजैन शास्त्रम लायाम् 1
च बादरसूक्ष्मत्वपरिणामविकल्पैः षट्प्रकारतामापद्य त्रैलोक्यरूपेण निष्पद्य स्थितवंत इति । तथाहि - बादरबादराः, बादराः, बादरसूक्ष्माः, सूक्ष्मबादराः, सूक्ष्माः, सूक्ष्मसूक्ष्माः इति । तत्र छिन्नाः स्वयं संधानासमर्थाः काष्ठपाषाणादयो बादरचादराः । छिन्नाः स्वयं संधानसमर्थाः क्षीरघृततैलतोयरसप्रभृतयो बादराः । स्थूलोपलंभा अपि छेत्तु भेत्तुमादातुमशक्या छायाऽऽतपतमोज्योत्स्नादयो बादरसूक्ष्माः । सूक्ष्मत्वेऽपि स्थूलोपलभाः स्पर्शरसगंधवर्णशब्दाः सूक्ष्मत्रादराः सूक्ष्मत्वेऽपि हि करणानुपलभ्याः कर्मवर्गणादयः सूक्ष्माः । अत्यंतसूक्ष्माः कर्मवर्गणाभ्योऽधो द्वद्यणुकस्कंधपर्यंताः सूक्ष्मसूक्ष्मा इति ॥ ७६ ॥ तात्पर्य -लोक्यंते जीवादिपदार्था यत्र स लोक इतिवचनात्पुद्गलादिषद्रव्यैर्निष्पन्नोऽयं लोकः न चान्येन केनापि पुरुषविशेषेण क्रियते हीयते धीयते वेति ॥ ७६ ॥
अथ तानेव षड्भेदान् विवृणोति; -
पुढवी जलं च छाया चउरिंदियविसय कम्मपाओग्गा । कम्मातीदा येवं छन्भेया पोग्गला होंति ॥ १ ॥
पृथिवी जलं च छाया चक्षुर्विषयं विहाय चतुरिन्द्रियविषयाः कर्मप्रायोग्याः कर्मातीता इति षड़भेदाः पुद्गला भवन्ति । ते च कथंभूताः ? स्थूलस्थूलाः स्थूलाः स्थूलसूक्ष्माः सूक्ष्मस्थूलाः स्पर्शरसवर्णगंध गुणके भेदोंसे षटगुणी हानिवृद्धि के प्रभाव से पुद्गल नाम पाता है । और उस ही परमाणु में किसी कालमें स्कंध होने की प्रगट शक्ति है । जो कभी नहीं होती तथापि परमाणुको पुद्गल संज्ञा है । और तीन प्रकार के जो स्कंध हैं वे अनंत परमाणु मिलकर एक पिंड अवस्थाको करते हैं । इस कारण उनमें भी पूरण- गलन स्वभाव है और उनका भी नाम पुद्गल कहा जाता है [ ते ] वे पुगल [ षट्प्रकाराः ] छह प्रकारके [ भवन्ति ] होते हैं । [ यै: ] जिन पुद्गलोंसे [ त्रैलोक्यं ] तीन लोक [ निष्पन्नं ] निर्मार्पित है । भावार्थ — वे छह प्रकारके पुद्गलस्कंध अपने स्थूल सूक्ष्म परिणामों के भेदोंसे तीन लोककी रचना में प्रवर्त्तते हैं । वे छह प्रकार कौन कौन से हैं सो बतलाते हैं । बादरवादर १, बादर २, बादरसूक्ष्म ३, सूक्ष्मबादर ४, सूक्ष्म ५, सूक्ष्मसूक्ष्म ६, ये छह प्रकार हैं। जो पुद्गलपिंड दो खंड करने पर अपने आप फिर नहीं मिलें ऐसे काष्ठपाषाणादिकको बादरबादर कहते हैं १, और जो पुद्गलस्कंध खंड खंड किये हुये अपने आप मिल जायें ऐसे दुग्ध घृत तैलादिक पुद्गलोंको बादर कहते हैं २, और जो देखनेमें तो स्थूल हों किन्तु खंड खंड करनेमें नहीं आयें, हस्तादिकसे ग्रहण करने में नहीं आयें ऐसे धूप, चंद्रमाकी चांदनी आदिक पुद्गल बादरसूक्ष्म कहलाते हैं ३, और जो स्कंध हैं तो सूक्ष्म परंतु स्थूलसे प्रतिभासित होते हैं ऐसे स्पर्श रस गंध शब्दादिक पुद्गल सूक्ष्मबादर कहलाते हैं ४, और जो स्कंध अति सूक्ष्म हैं, इन्द्रियोंसे ग्रहण करने में नहीं आते ऐसे कर्म वर्गणादिक सूक्ष्मपुद्गल कहलाते हैं ५, और जो
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