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________________ श्रीमद्रराजचन्द्रजैनशास्त्र मालायाम् । तदर्धा स्कंधप्रदेशो नाम पर्य्यायः । तदर्थं स्कंधदेशो नाम पर्य्यायः । तदर्धाधं स्कंधदेशो नाम पर्य्यायः । एवं भेदवशाद्वयणुकस्कंधादनंता: स्कंधप्रदेशपर्यायाः । निर्विभागैकदेशः स्कंधस्या भेदपरमाणुरेकः । पुनरपि द्वयोः परमाण्वोः संघातादेको द्वयणुकंस्कंधपर्य्यायः । एवं संघातवशादन्ताः स्कंधपर्य्यायाः । एवं भेदसंघाताभ्यामप्यनंता भवतीति ।। ७५ ।। १२८ घटपटाद्यखण्डरूपः सकल इत्युच्यते तस्यानंतपरमाणुपिं डस्य स्कंदसंज्ञा भवति । तत्र दृष्टांत - माह - षोडशपरमाणुपिंडस्य स्कंद कल्पना कृता तावत् एकैकपरमाणोरपनयेन नवपरमाणुपिंडे स्थिते ये पूर्वविकल्पा गतास्तेपि सर्व स्कंदा भण्यंते, अष्टपरमाणुपिंडे जाते देशो भवति तत्राप्येकैकापनयेन पंचपरमाणुपिंडपर्यंतं ये विकल्पा गतास्तेषामपि देशसंज्ञा भवति, परमाणुचतुष्टयपिंडे स्थिते प्रदेशसंज्ञा भण्यते पुनरप्येकैकापनयेन दूधगुकस्कंदे स्थिते ये विकल्पा गतास्तेषामपि प्रदेशसंज्ञा भवति परमाणू चैव अविभागी परमाणुश्चैवाविभागीति । पूर्व भेदेन स्कंदा भणिता, इदानीं संघातेन कथ्यंते, परमाणुद्वयं संघातेन द्वगुकरकंदो भवति, त्रयाणां संघातेन त्र्यणुक इत्याद्यनंतपर्यता ज्ञातव्या । एवं भेदसंघाताभ्यामप्यनंता भवतीति । अत्रो स्कंधप्रदेश नामका है [ च एव ] निश्चयसे [ अविभागी ] जिसका दूसरा भाग नहीं होता उसका नाम [ परमाणुः ] पुद्गलपरमाणु कहलाता है । भावार्थ — स्कंध, स्कंधदेश, स्कंधप्रदेश इन तीन पुद्गलस्कंधोंमें अनंत अनंत भेद हैं । परमाणुका एक ही भेद है । दृष्टांत द्वारा इस कथनको प्रगट कर दिखाया जाता है । अनंतानंत परमाणुओंके स्कंधकी निशानी सोलहका अंक जानना चाहिये । क्योंकि समझाने के लिये थोड़ासा गणित द्वारा दिखाते हैं । सोलह परमाणुका उत्कृष्ट स्कंध कहा जाता है । उसके आगे एक एक परमाणु घटाते जावें । नवके अंक तक परमाणुओंका जघन्य स्कंध है । नवसो पंद्रहसे लेकर दश तक मध्यम भेद जानो । इसी प्रकार स्कंधके भेद एक एक परमाणुकी कमीसे अनंत जानो । और आठ परमाणुका उत्कृष्ट स्कंधदेश जानो । पांच परमाणुका जघन्य स्कंधदेश जानो । सातसे लेकर छह तक मध्यम स्कंध देशके भेद जानो । इसी प्रकार एक एक परमाणुकी कमीसे स्कंधदेशके भेद अनंत जानो । तथा चार परमाणुका उत्कृष्ट स्कंधप्रदेश जानो । दो परमाणुओंका जघन्य स्कंध प्रदेश होता है । तीनसे लेकर मध्यम स्कंधप्रदेशके भेद होते हैं । इसी प्रकार स्कंधप्रदेश भेद एक एक परमाणुकी कमी से जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेदोंसे अनंत जानो । और परमाणु अविभागी है । इसमें भेद कल्पना नहीं है। ये चार प्रकार भेदके द्वारा जानो और ये ही चार भेद मिलापके द्वारा भी गिने जाते हैं । मिलाप नाम संघातका है । दो परमाणु के मिलनेसे जघन्य स्कंधप्रदेश होता है। इसी प्रकार एक एक अधिक परमाणु मिलानेसे इन तीन स्कंधोंके भेद उत्कृष्ट स्कंध तक जानने चाहिये । भेद संघातके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002941
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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