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अवधान-प्रयोग, स्पर्शनशक्ति ।
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श्रीमद्जीकी स्मरणशक्ति अत्यन्त तीव्र थी । वे जो कुछ भी एक बार पढ़ लेते, उन्हें ज्यों का त्यों याद रह जाता था । इस स्मरणशक्तिके कारण वे छोटी अवस्था में ही अवधान-प्रयोग: करने लगे थे। धीरे धीरे वे सौ अवधान तक पहुंच गये थे । वि० सं० १९४३ में १९ वर्षकी अवस्था में उन्होंने बम्बईकी एक सार्वजनिक सभामें डॉ पिटर्सन के सभापतित्वमें सौ अवधानोंका प्रयोग बताकर बड़े-बड़े लोगोंको आश्चर्यमें डाल दिया था । उस समय उपस्थित जनताने उन्हें 'सुवर्णचन्द्रक' प्रदान किया, साथही 'साक्षात् सरस्वती' के पदसे भी विभूषित किया था । ई० सन् १८८६-८७ में ' मुंबई समाचार ' ' जामे जमशेद ' 'गुजराती' 'पायोनियर ' ' इण्डियन स्पॅक्टेटर ' 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' आदि गुजराती एवं अंग्रेजी पत्रोंमें श्रीमद्जीकी अद्भुत शक्तियोंके बारेमें भारी प्रशंसात्मक लेख छपे थे । शतावधानमें शतरंज खेलते जाना, मालाके दाने गिनते जाना, जोड़ बाकी गुणा करते जाना, आठ भिन्न-भिन्न समस्याओंकी पूर्ति करते जाना, सोलह भाषाओं के भिन्न-भिन्न क्रमसे उलटे-सीधे नम्बरोंके साथ शब्दोंको याद रखकर वाक्य बनाते जाना, दो कोठोंमें लिखे हुए उल्टे-सीधे अक्षरोंसे कविता करते जाना, कितनेही अलंकारोंका विचार करते जाना, इत्यादि सौ कामों को एक ही साथ कर सकते थे ।
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श्रीमदजीकी स्पर्शनशक्ति भी अत्यन्त विलक्षण थी । उपरोक्त सभा में ही उन्हें भिन्न भिन्न प्रकारके बारह ग्रन्थ दिये गये और उनके नाम भी उन्हें पढ़कर सुना दिये गये । बादमें उनकी आंखों पर पट्टी बाँधकर जो जो ग्रन्थ उनके हाथ पर रखे गये उन सब ग्रन्थोंके नाम हाथोंसे टटोलकर उन्होंने बता दिये ।
श्रीमदजीकी इस अद्भुतशक्ति से प्रभावित होकर उस समयके बम्बई हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर चार्ल्स सारजंटने उन्हें विलायत चलकर अवधान-प्रयोग दिखानेकी इच्छा प्रगट की थी, परन्तु श्रीमद्जीने इसे स्वीकार नहीं किया । उन्हें कीर्तिकी इच्छा नहीं थी, बल्कि ऐसी प्रवृत्तियों को आत्मकल्याणके मार्ग में बाधक जानकर फिर उन्होंने अवधान-प्रयोग नहीं किये । महात्मा गांधी ने कहा था
महात्मा गांधीने उनकी स्मरणशक्ति और आत्मज्ञानसे जो अपूर्वं प्रेरणा प्राप्त की वह संक्षेपमें उन्हीं के शब्दों में--.
"रायचन्दभाई के साथ मेरी भेंट जुलाई सन् १८९१ में उस दिन हुई जब मैं विलायतसे बम्बई वापिस लोटा । इन दिनों समुद्र में तूफान आया करता है इसकारण जहाज रातको देरीसे पहुंचा । मैं डाक्टर बैरिस्टर और अब रंगूनके प्रख्यात जौहरी प्राणजीवनदास महेता के घर उतरा था । रायचन्दभाई उनके बड़े भाईके जमाई होते थे । डॉक्टर सा० ( प्राणजीवनदास ) ने ही परिचय कराया । उनके दूसरे बड़े भाई झवेरी रेवाशंकर जगजीवनदासकी पहचान भी उसी दिन हुई। डाक्टर सा० ने रायचन्दभाईका 'कवि' कहकर परिचय कराया और कहा, 'कवि' होते हुए भी आप हमारे साथ व्यापार में हैं, आप ज्ञानी और शतावधानी हैं। किसीने सूचना की कि मैं उन्हें कुछ शब्द सुनाऊं, और वे शब्द चाहे किसी भी भाषाके हों, जिस क्रमसे मैं बोलूगा उसी क्रमसे वे दुहरा जावेंगे, मुझे यह सुनकर आश्चर्य हुआ । मैं तो उस समय जवान और विलायतसे
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