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________________ - पंञ्चास्तिकायः । VOU सह सदा शून्यमिति, द्रव्यं स्वद्रव्येण सदाऽशून्यमिति, कचिजीवद्रव्येऽनंतं ज्ञानं क्वचित्सांतं ज्ञानमिति, कचिजीवद्रव्येऽनंतं कचित्सांतमज्ञानमिति । एतदन्यथानुपपद्यमानं मुक्तौ जीवस्य सद्भावमावेदयतीति ॥ ३७॥ ... भव्यत्वं अतीतमिय्यात्वरागादिविभावपरिणामेनाभवनमपरिणमनमभव्यत्वं । सुण्णमिदरं च स्वशुद्धात्मद्रव्यविलक्षणेन परद्रव्यक्षेत्रकालभावचतुष्टयेन नास्तित्वं शून्यत्वं निजपरमात्मानुगतस्वद्रव्यक्षेत्रकालभावरूपेणेतरश्वाशून्यत्वं विण्णाणमविण्णाणं समस्तद्रव्यगुणपर्यायैकसमयप्रकाशनसमर्थसकलविमलकेवलज्ञानगुणेन विज्ञानं विनष्टमतिज्ञानादिछद्मस्थज्ञानेन परिज्ञानादविज्ञानमिति गवि जुञ्जदि असदि सम्भावे इदं तु नित्यत्वादिस्वभावगुणाष्टकमविद्यमानजीवसद्भावे मोक्षे न युज्यते न घटते तदस्तित्वादेव ज्ञायते मुक्तौ शुद्धजीवसद्भावोस्ति । अत्र स एवोपाकिसके होगा ? [च ] तथा [ शून्यं ] परद्रव्यस्वरूपसे जीवद्रव्यरहित है। इसको शून्यभाव कहते हैं [ इतरं ] अपने स्वरूपसे पूर्ण है उसको अशून्यभाव कहते हैं । यदि मोझमें वस्तुही नहीं है तो ये दोनों भाव किसके कहे जायेंगे [च ] और [ विज्ञानं ] यथार्थ पदार्थका जानना [ अविज्ञानं ] औरका और जानना । झान अज्ञान दोनों प्रकारके भाव यदि मोक्षमें जीव नहीं हों तो कहे नहीं जायें, क्योंकि किसी जीवमें ज्ञान अनंत है, किसी जीवमें ज्ञान सांत है। किसी जीवमें अज्ञान अनंत है, किसी जीवमें अज्ञान सांत है। शद्ध जीव-दव्यमें केवलजानकी अपेक्षा अनंत ज्ञान है। सम्यग्दृष्टी जीवके क्षयोपशम झानकी अपेक्षा सांत ज्ञान है। अभव्य मिथ्यादृष्टीकी अपेक्षा अनंत अज्ञान है । भव्यमिथ्यादृष्टीकी अपेक्षा सांत अंज्ञान है । सिद्धोंमें समस्त त्रिकालवी पदार्थोंकाके जाननेरूप ज्ञान है, इस कारण ज्ञानभाव कहा जाता है। और कथंचित्प्रकार अज्ञानभाव भी कहा जाता है। क्योंकि क्षायोपशमिक ज्ञानका सिद्धोंमें अभाव है । इसलिये विनाशीक ज्ञानकी अपेक्षा अज्ञानभाव जानना । यह दोनों प्रकारके ज्ञान-अज्ञानभाव यदि मोक्षमें जीवका अभाव हो तो नहीं बन सकते। भावार्थ-जो अज्ञानी जीव मोक्ष अवस्थामें जीवका नाश मानते हैं उनको समझानेके लिये आठ भाव हैं । इन आठ भावोंसे ही मोक्षमें जीवका अस्तित्व सिद्ध होता है। और जो ये आठ भाव नहीं हों तो द्रव्यका अभाव हो जाय । द्रव्यके अभावसे संसार और मोक्ष दोनों अवस्थाका अभाव हो जायगा । इस कारण इन आठों भावज्ञानोंको जानना चाहिये । धौव्यभाव १, व्ययभाव २, भव्यभाव ३, अभव्यभाव ४, शून्यभाव ५, अशून्यभाव ६, ज्ञान १ स्वशुद्धात्मद्रव्यविलक्षणेन परद्रव्यक्षेत्रकाळभावचतुष्टयेन नास्तित्वं शून्यत्वम्. २ निजपरमात्मतावानुगतद्रव्यक्षेत्रकालभावरूपेणेतरमशून्यत्वम्. ३ समस्तद्रव्यगुणपर्यायकसबयप्रकासनसमर्थसकलविमलकेवलज्ञानगुणेन विज्ञानम्. ४ विनष्टमतिज्ञानादिछग्रस्थाशाने परिज्ञानादविज्ञानम्. ५ मोक्षावस्थायामिदं नित्यत्वादिस्वभावगुणाष्टकमविद्यमानजीवसद्भावे मोक्षे न युज्यते मघटते । तदस्तित्वादेव ज्ञायते मुक्तो शुद्धजीवसद्भावोऽस्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002941
Book TitlePanchastikaya
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size18 MB
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