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विसहर फुलिंग मंतं, विस-हर-फु-लिङ्-ग-मन्-तम्, विसहर फुर्लिग मंत्र का (सर्पादि के विष एवं
अग्नि आदि का निवारण करने वाला मंत्र) कंठे धारेइ जो सया मणुओ। कण्-ठे धारे-इ जो सया मणु-ओ। जो मनुष्य सदा कंठ में धारण करता है / जो
मनुष्य सदा स्मरण करता है। तस्स गह-रोग मारी, तस्-स गह-रोग-मारी,
| उसके ग्रह दोष, महारोग, महामारी, दुट्ट-जरा जंति उवसामं ॥२॥ दुट्-ठ जरा जन्-ति उव-सा-मम् ॥२॥ विषम ज्वर शांत हो जाते हैं। २. गाथार्थ : जो मनुष्य विसहर फुलिंग मंत्र का नित्य स्मरण करता है, उसके ग्रह दोष, महारोग, महामारी और विषम ज्वर शांत हो जाते हैं । २. चिट्ठउ दूरे मंतो, चिट्-ठउ दूरे मन्-तो,
मंत्र तो दूर रहे, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ तुज्-झ पणा-मो वि-बहु-फलो होइ। आपको किया हुआ प्रणाम भी बहुत फल देने वाला है। नर तिरिएसु वि जीवा, नर-तिरि-एस वि-जीवा,
मनुष्य और तिर्यंच गति में भी जीव पावंति न दुक्ख-दोगच्चं ॥३॥ पावन्-ति न दुक्-ख-दो-गच्-चम् ॥३॥ दुःख और दरिद्रता को प्राप्त नहीं करते हैं । ३.
गाथार्थ : मंत्र तो दूर रहे, आपको किया हुआ प्रणाम भी बहुत फल देने वाला है। मनुष्य और तिर्यंच गति में भी जीव दुःख और दरिद्रता को प्राप्त नहीं करते हैं । ३. तुह सम्मत्ते लद्धे,
तुह सम्-मत्-ते लद्-धे, आपके सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर चिंतामणि-कप्पपाय- चिन्-ता-मणि कप-प-पाय- चिंतामणि रत्न और कल्पवृक्ष से भी वब्भहिए। वब-भ-हिए।
अधिक (शक्तिशाली) पावंति अविग्घेणं,
पावन्-ति-अविग्-घेणम्, जीव सरलता से जीवा अयरामरं ठाणं ॥४॥ जीवा-अय-रा-मरम् ठाणम् ॥४॥ अजरामर स्थान (वृद्धावस्था और मृत्यु से रहित स्थान /
मोक्षपद) को प्राप्त करते हैं। ४. ___गाथार्थ : चिंतामणि रत्न और कल्पवृक्ष से भी अधिक शक्तिशाली आपके सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर जीव सरलता से अजरामर (मुक्ति) पद को प्राप्त करते हैं। ४. इअसंथुओ महायस!, इअसन्-थुओ महा-यस!,
इस प्रकारआपकी स्तुति की हैहेमहायशस्विन् ! भत्तिब्भर निब्भरेण हियएण। भत्-तिब्-भर निब्-भ-रेण-हिय-एण। भक्ति से भरपूरहृदय से तादेव! दिज्ज बोहिं, तादेव!दिज्-जबो हिम्,
इसलिये हेदेव! भवोभव बोधि (सम्यक्त्व)को भवे भवेपास जिणचंद!॥५॥ भवे भवेपास-जिण-चन्-द!॥५॥ प्रदान कीजिए जिनेश्वरों में चन्द्रसमानहे श्री पार्श्वनाथ!५. ___ गाथार्थ : हे महायशस्वी ! मैंने इस प्रकार भक्ति से भरपूर हृदय से आपकी स्तुति की है। इसलिये हे देव ! जिनेश्वरों में चंद्र समान हे श्री पार्श्वनाथ ! भवोभव बोधि को प्रदान कीजिए।५.
शुद्ध
प्रस्तुत सूत्र की रचना-रचयिता के सम्बन्ध में कुछ दिग्दर्शन मंगल कल्याण आवासं मंगल कलाण आवासं
श्री संघ के ऊपर जब व्यन्तरदेव द्वारा उपद्रव किया गया तब तुअसमत्तेलद्धे तुहसम्मत्ते लद्धे
उसके निवारण के लिए लगभग २२०० वर्ष पहले अंतिम चौदपूर्वधर श्री
आर्य भद्रबाहस्वामीजी ने इस स्तोत्र की ७ गाथा प्रमाण रचना की थी। पावंति अविधेणं पावंति अविग्घेणं
विषमकाल में उन मंत्राक्षरों का दुरुपयोग होने के कारण शासनरक्षक इह संथुओ महायस्स इअसंथुओ महायस
अधिष्ठायक देव की विनती से बाद में दो गाथाए लुप्त की गई । वर्तमान भत्तिभर भत्तिब्भर
में, पाच गाथाओं का यह स्तोत्र पूर्वधर के द्वारा रचित होने के कारण यह दिज्ज बोहि दिज्ज बोहि
सूत्र भी कहलाता है। इन्हीं पूर्वधर भगवंत के द्वारा श्री कल्पसूत्र की भी रचना की गई है। वे आर्य स्थूल भद्रस्वामीजी के विद्यागुरु थे।
अशुद्ध
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