________________
१७. श्री नमोऽर्हत् सूत्र
'अर्हत्'
आदान नाम : श्री नमोऽर्हत् सूत्र विषय: गौण नाम : पंच परमेष्ठि नमस्कार अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, गुरु अक्षर :७
उपाध्याय तथा साधु 'सिद्ध' लघु अक्षर:८
स्वरूप पंचपरमेष्ठि सर्व अक्षर : १५
को नमस्कार। मूल सूत्र उच्चारण अर्थ नमोऽर्हत्- नमोऽर्-ऽहत्- नमस्कार हो अरिहंत सिद्धा- सिद्-धा
सिद्ध -चार्यो चार-यो आचार्य पाध्याय- पा-ध्या-य
उपाध्याय और 'उपाध्याय' सर्व- सर-व
साधुभ्यः ॥ सा-धु-भ्यः ॥ साधुओं को॥ गाथार्थ : अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं को नमस्कार हो।
इस सूत्र के सम्बन्ध में विशेष जानकारी यह सूत्र पूर्व में से उद्धृत होने के कारण साध्वीजीभगवंत तथा श्राविकाओं को बोलने का अधिकार नहीं है। उन्हें इस सूत्र की जब आवश्यकता होती है, तब श्री नवकारमन्त्र बोलने की प्रथा प्रचलित है। यह सूत्र विविधरागों में बोला जाता है। परन्तु इसमें गुरु-लघु अक्षर व जोडाक्षर की उच्चारण विधि में बाधा नहीं पहुचे, उसी प्रकार बोलना चाहिए । गुरु आज्ञा के बिना श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी ने यह सूत्र पूर्व में से उद्धृत करके बनाने के कारण उन्हें संघ में से बाहर निकाला गया तथा योग्य प्रायश्चित कर राजा को प्रतिबोध करने के कारण उन्हें पुनः श्रीसंघ में सम्मानपूर्वक स्वीकार किया गया।
'आचार्य'
सर्व
'सर्वसाधु
१८. श्री उवसग्गहरे सूत्र
देववन्दन,
आदान नाम : श्री उवसग्गहरं सूत्र | विषय : चैत्यवन्दन तथा
गौण नाम : उपसर्गहर स्तोत्र धर्ममार्ग में प्रतिक्रमण करते
पद :२०
अंतरायभूत विघ्नों समय यह सूत्र
संपदा : २०
के निवारण की बोलते-सुनते
गुरु-अक्षर : २१
प्रार्थना गर्भित समय की मुद्रा।
लघु-अक्षर : १६४
पार्श्वनाथ प्रभु की अपवादिक मुद्रा। सर्व अक्षर : १८५
स्तवना। छंद का नाम : गाहा; राग : जिण जम्म समये मेरु सिहरे...(स्नात्र-पूजा) मूल सूत्र उच्चारण में सहायक
पद क्रमानुसारी अर्थ उवसग्गहरं पासं, उवसग्-ग हरम्-पासम्,
उपसर्गों को दूर करने वाले, पार्श्व यक्ष सहित पासं वदामि कम्मपासम्-वन्-दामि-कम्-म
श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ। घण-मुक्कं। घण-मुक्-कम्।
कर्म समूह से मुक्त, विस-हर-विस-निन्नासं, विस-हर-विस-निन्-ना-सम्,
विषधर (सर्प) के विष को नाश करने वाले मंगल-कल्लाण-आवासं ॥१॥ मङ्-गल-कल्-लाण-आ-वा-सम् ॥१॥ मंगल और कल्याण के गृह रूप । १.
गाथार्थ : उपद्रवों को दूर करने वाले पार्श्व यक्ष सहित, कर्म समूह से मुक्त, सर्प के विष का नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के गृह रूप श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ। १.
Jan Education
जिERPersonal use Only
www.jainelibrarpog