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बायां पैर थोड़ा ऊँचा रखकर दोनों हाथों को अंजलि के समान रखकर ललाट प्रदेश को स्पर्श कर रखने की मुद्रा ।
सव्वाइं ताइं वंदे,
इह संतो तत्थ संताई ॥ १ ॥
अशुद्ध
जावंत चेईयाई सव्वाई ताई
ईअ संतो तत्थ संताई
सूत्र बोलते समय की यह सन्मुख चित्र की स्पष्ट मुद्रा ।
अपवादिक सन्मुख मुद्रा ।
मूल सूत्र जावंत के वि साहू, भरहे-वय-महाविदेहे अ । सव्वेसिं तेसिं पणओ,
अशुद्ध जावंति के वि साहू महाविदेहे पणहो
तिदंड वीरियाणं
छंद का नाम : गाहा; राग : जिण जम्म समये मेरु सिहरे... (स्नान-पूजा)
मूल सूत्र जावंति चेइआई,
उच्चारण में सहायक जावन्-ति चेइ आइम्,
उड्ढे अ अ अ तिरिअ लोए अ । उड् ढे -अ- अहे - अ - तिरि-अ- लोए अ ।
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शुद्ध
जावति चेइयाई सव्वाई ताई इह संतो तत्थ संताई
१५. श्री जावंति चेइआई सूत्र
: श्री जावंति चेइआई सूत्र विषय :
14
चैत्यवंदन
सूत्र
आदान नाम गौण नाम
गाथा
साईड पोझ में
मुक्ता शुक्ति मुद्रा ।
सव्-वाइम् ताइम् वन्-दे,
इह सन्-तो तत्-थ सन्-ता-इम् ॥१॥
पद
संपदा
गुरु-अक्षर
लघु-अक्षर सर्व अक्षर
शुद्ध जावंत के वि साहू महाविदेहे अ पणओ
तिदंड विरयाणं
आदान नाम
गौण नाम
गाथा
पद
संपदा
: १
: ४
: ४
गुरु-अक्षर
लघु-अक्षर सर्व अक्षर
तिविहेण तिदंड - विरयाणं ॥ १ ॥ तिवि-हे-ण ति-दण् ड विर- याणम् ॥१॥
: ३
: ३२
: ३५
गाथार्थ : उर्ध्व लोक, अधो लोक और तिर्यक् लोक में जितने जिन चैत्य हैं, वहाँ रहे हुए उन सब (चैत्यों) को यहाँ रहा हुआ मैं वंदन करता हूँ । १.
पद क्रमानुसारी अर्थ जितने जिन चैत्य
१६. श्री जावंत के वि साहू सूत्र
: श्री जावंत के वि साहू सूत्र विषय :
: मुनिवंदन सूत्र
: १
: ४ ४
: ३
: ३७
: ४० (३८)
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उर्ध्व लोक (स्वर्ग), अधो लोक (पाताल) और तिर्यक् / मध्य (मनुष्य) लोक में
उन सब को मैं वंदन करता हूँ यहाँ रहा हुआ वहां रहे हुए । १.
छंद का नाम : गाहा; राग : जिण जम्म समये... (स्त्रात्र-पूजा ) उच्चारण में सहायक जा-वन्-त के वि साहू, भर-हे-रव-य महा-विदे-हे-अ । सव्-वे-सिम् तेसिम् पण-ओ,
पद क्रमानुसारी अर्थ जितने कोई भी साधु
स्वर्ग, पाताल
तथा मनुष्यलोक
में स्थित जिनचैत्यों की वंदना ।
भरत - ऐरावत
महाविदेह क्षेत्र में स्थित साधु भगवंतों की
वंदना |
त्रिकरण पूर्वक तीन प्रकार के दंड से निवृत्त । १.
गाथार्थ : भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र में जितने भी साधु त्रिकरण पूर्वक तीन दंड से निवृत हैं, उन सबको मैं प्रणाम करता हूँ । १.
भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र में उन सबको मैं प्रणाम करता हूँ ।
• श्री वीतराग परमात्मा की पहचान करानेवाले, समझाने वाले और सन्मार्ग को दिखानेवाले साधु भगवन्त हैं । उन्ही को यह सूत्र से वंदन किया जाता है । योग्य बहुमान आदर- अहोभाव से वंदना करने से कर्म निर्जरा होती है ।
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