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९.मोक्ष संपदा सव्वन्नूणं सव्वदरिसीणं
सव-वन्-नू-णम्, सव्-व-दरि-सी-णम्, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी सिव-मयल-मरुअ-मणंत- सिव-मय-ल-मरु-अ-मणन्-त- शिव (उपद्रव रहित), अचल (स्थिर), अचल
(रोग रहित), अनंत (अंत रहित), मकखय-मव्वाबाहमक्-खय-मव-वा-बाह
अक्षय (क्षय रहित), अव्याबाध (कर्म जन्य पीड़ा रहित), मपुणरावित्तिमपु-ण-रावित्-ति
अव्याबाध (कर्म जन्य पीड़ा रहित), पुनरागमन रहित सिद्धि गइनामधेयं सिद्-धि-गइ-नाम-धेयम्
(पुनरागमन रहित/जहाँ जाने के बाद पुनः संसार में
आना नहीं पडता /पुनर्जन्म मृत्यु रहित) सिद्धिगति नामक ठाणं संपत्ताणं ठाणम् सम्-पत्-ताणम्
स्थान को प्राप्त किये हुए, नमो जिणाणं जिअ-भयाणं ॥९॥ नमो जिणा-णम् जिअ-भया-णम् ॥९॥ जिनेश्वरों को नमस्कार हो। भय को जीतने वाले ९. गाथार्थ : सर्वज्ञ और सर्वदर्शी, शिव, अचल, अरुज, अनंत, अक्षय, अव्याबाध, पुनरागमन रहित, सिद्धि गति नामक स्थान को प्राप्त किये हुए और भय को जीतने वाले जिनेश्वरों को नमस्कार हो । ९.
छंद का नाम : गाहा; राग : जिण जम्म समये मेरु सिहरे... (स्नात्र-पूजा) जे अ अईआ सिद्धा, जे अ अई-आ सिद्-धा,
और जो भूत काल में सिद्ध हुए हैं, जे अ भविस्संति णागए काले। जे अ-भविस्-सन्-ति-णा-गए काले। और जो भविष्य काल में (सिद्ध) होंगे संपइ अ वट्टमाणा, सम्-पइ अवट-ट-माणा,
और वर्तमान काल में विद्यमान हैं, सव्वे तिविहेण वंदामि ॥१०॥ सव-वे तिवि-हेण वन-दामि ॥१०॥ (उन) सब (अरिहंतों) को मैं तीनों प्रकार
(मन, वचन और काया) से वंदन करता हूँ।१०. गाथार्थ : जो भूत काल में सिद्ध हुए हैं, भविष्य काल में
अशुद्ध उच्चारो उसके सामने शुद्ध उच्चार (सिद्ध) होंगे और वर्तमान काल में विद्यमान हैं (उन) सर्व
अशुद्ध (अरिहंतों ) को मैं तीनों प्रकार से वंदन करता हूँ। १०.
नमुथुणं
नमुत्थुणं नमुत्थुणं सूत्र के ३३ पदों में ९ संपदाओं के नामों के आयगराणं
आइगराणं धम्मदेसीयाणं
धम्मदेसयाणं कारण व अर्थ का विवरण
लोगपज्जोगराणं लोगपज्जोअगराणं (१) स्तोतव्य संपदा : स्तुति-स्तवना करने योग्य एक अरिहंत
चखुदयाणं,मग्दयाणं चक्खुदयाणं,मग्गदयाणं परमात्मा ही है, जिससे दो पदोंवाली पहली संपदा 'नमुत्थुणं से
धम्दयाणं
धम्मदयाणं भगवंताणं' तक।
अपडिहयवरनाणं अप्पडिहयवरनाण (२) ओघ हेतु संपदा : अरिहंत परमात्मा को ही नमस्कार करने का
जिण्णाणंजावयाणं जिणाणं जावयाणं ओघ (सामान्य) हेतु को दर्शानेवाली तीन पदोंवाली
तिन्नाणंतारियाणं तिन्नाणंतारयाणं 'आईगराणं से सयं-संबुद्धाणं' तक।
बुद्धाणंबोहियाणं बुद्धाणं बोहयाणं (३) विशेषहेतु संपदा : अरिहंत परमात्मा को ही नमस्कार करने के
सवनूणं
सव्वन्नृणं विशेष हेतु (कारण) को दर्शानेवाली चार पदोंवाली
मपुणराविति
मपुणरावित्ति 'पुरिसुत्तमाणं से पुरिसवरगन्धहत्थीणं' तक।
जे अईआ सिद्धा जे अअईआ सिद्धा सामान्य-उपयोग संपदा : अरिहंत परमात्मा सामान्य रूप से
भविसंति अणागओकाले भविस्संतिणागओकाले सर्वलोक के परार्थ व परमार्थ करने से उपकारी होने के कारण
तिवेहण
तिविहेण उसे दर्शाने के लिए पांच पदोंवाली 'लोगुत्तमाणं से लोगपज्जो-अगराणं' तक।
(८) जिनसमफल संपदा : अरिहंत परमात्मा का (५) तद्-हेतु संपदा : सामान्य उपयोग में अर्थात् समस्त लोगों
जैसा स्वरूप है, वैसा स्वरूप वे हमें तथा अन्य के परमार्थ करने में कारणभूत पांच पदोंवाली 'अभयदयाणं से
जीवों को भी देते हैं, उसे दर्शाने वाली बोहिदयाणं' तक।
'जिणाणं से मोअगाणं' तक। (६) विशेष उपयोग संपदा : जो विशेष उपयोग प्रयोजनरूप अर्थ
(९) मोक्ष संपदा : अरिहंत परमात्मा अघातिकर्म का पाँच पदोंवाली'धम्मदयाणं से धम्मवर चाउरंत-चक्कवठीणं' तक। नाश कर सिद्ध-अवस्था को प्राप्त करते हैं। (७) स्वरूप संपदा : अरिहंत परमात्मा के स्वरूपों का वर्णन करते
तथा सिद्धावस्था को दर्शानेवाली पदावली हुए दो पदोंवाले 'अप्पडिहय...से विअट्ट-छउमाणं' तक।
'सव्वन्नणं से जिअभयाणं' तक।
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