SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 808 सर्वा-सर्वदी, ब-अबल-अरुज-अनंत-अक्षय-अव्यांबाध पुनरावृत्ति सिविपति-नाम-स्थान-संप्राप्त साण मोमगाण. (मामा -मको भरनेमाले) अपडिहय-वर-नाणदंसण-घराणं STIA राजता और अंदन और माउ अत्तिवाले तोक आवरण दूर करनेवाले वियदृछउमाण 'अप्पडिहय-वरनाण-दसण धराणं' = शुक्लध्यान से प्रगट हुए केवलज्ञान तथा केवलदर्शन से युक्त प्रभुजी को तीनों काल तथा समस्त विश्व को देखते हुए देखकर नमन करना । वियट्ट-छउमाणं = प्रभुजी के ध्यानरुपी अग्नि से Raiplomagraney DOORamannaal छनास्थ अवस्था में कारणभूत चार घाति (ज्ञानावरणीय, DISCOOKIP दर्शनावरणीय, मोहनीय तथा अंतराय) कर्म को जलाते हुए डाण बोहयाथ ऐसे प्रभुजी को देखकर नमन करना । जिणाणं-जावयाणं ooooo = १०वे गुणस्थानक के अन्त में राग-द्वेष विजेता वीतराग को देखना और ऐसे वे अन्यों को भी बनाने में समर्थ देखकर नमन । 'तिन्नाणं-तारणाणं' = १२वे गुणस्थानक के अन्त में शेष रहे घातिकर्म अज्ञान-निद्रा-अन्तराय के महासागर को तीर जाते प्रभुजी को गोदोहिका आसन में देखना और ऐसे ही अन्यों को भी तारने में समर्थ देखकर नमन । 'बुद्धाणं-बोहयाणं' = १३वे गुणस्थानक में बुद्ध सर्वज्ञ बनकर समवसरण पर विराजित देखना और ऐसे वे अन्यो को भी बुद्ध बनाने में समर्थ देखर नमन । 'मुत्ताणंमोअगाणं' = १४ वे गुणस्थानक के अन्त में सर्वकर्ममल से मुक्त सिद्धशिला पर ज्योति स्वरुप रहे हुए देखना और ऐसे वे अन्यों को भी मुक्त करने में समर्थ देखकर नमन । सव्वन्नूणं सव्व दरिसीणं = सर्वज्ञ तथा सर्वदेशी अरिहंत भगवंतों को देखकर नमन । 'सिव-मयल-मरुअ-मणंतमक्खय-मवाबाह-मपुनरावित्ति = कल्याण स्वरूप, निश्चल, निरोगी, अंतरहित, अक्षयस्थितिरूप किसी भी प्रकार की बाधा से रहित (अव्याबाध) तथा पुनरागमन रहित ऐसी...' सिद्धि गड नामघेय ठाणं संपत्ताणं'सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त.. 'नमो जिणाणं जिअ भयाणं'-राग-द्वेष को जीतने वाले तथा सर्वभयों को संपड़ अ वट्टमा जीतनेवाले श्री अरिहंत भगवंतों को भावपूर्वक नमस्कार हो । 'जे अ अईया सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले, संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे तिविहेण वंदामि॥ साधना करनेवाला साधक दाहिनी ओर अष्टकर्म रखते हुए भूतकाल में हुए अनंत अरिहंत भगवंतों की कल्पना करनी, बाई ओर भविष्य में अष्टकर्मों से मुक्त अनन्त अरिहंतों की कल्पना सले तिविहेण बंकानि करनी तथा सन्मुख वर्तमान पाँच महाविदेह क्षेत्र में विहार करनेवाले श्री सीमंधर स्वामि आदि बीस विहरमान अरिहंत भगवंतों की कल्पना कर तीनों काल के अरिहंत भगवंतों को मन-वचन-काया से भावपूर्वक नमन करना। ७. स्वरुप संपदा अप्पडिहय-वरनाण 1 अप्-पडि-हय-वर-नाण- नष्ट न होने वाले, श्रेष्ठ ज्ञान और दंसणधराणं वियट्ट-छउमाणं ॥७॥ दन्-सण-धरा-णम्- दर्शन को धारण करने वाले छद्मस्थता से रहित ॥७॥ वियट-ट-छउ-माणम् ॥७॥ गाथार्थ : नष्ट न होने वाले श्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन को धारण करने वाले, छद्मस्थता से रहित ७ ८.जिनसमफल संपदा जिणाणं जावयाणं जिणा-णम् जाव-याणम्, । (इंद्रिय आदि को) जीतने वाले और जिताने वाले, तिन्नाणं तारयाणं तिन्-नाणम् तार-याणम्, (संसार समुद्र से) तरे हुए और तारने वाले, बुद्धाणं बोहयाणं बुद्-धा-णम् बोह-याणम्, बोध प्राप्त किये हुए और बोध प्राप्त कराने वाले, मुत्ताणं मोअगाणं ॥८॥ मुत्-ता-णम्-मोअ-गा-णम् ॥८॥ मुक्त और मुक्ति प्राप्त कराने वाले ८. गाथार्थ : जीतने वाले और जिताने वाले, तरे हुए और तारने वाले, बोध पाये हुए और बोध प्राप्त कराने वाले, मुक्त (मुक्ति को पाये हुए) और मुक्ति प्राप्त कराने वाले ८. जे अ अविस्संति मागए काले जे अअइया सिद्धा Freeapoeकककन Jain Brason Interational wwwn o
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy