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________________ नमुन्शुणं भगवंता 25 रिहा साय संबुद्धाण विश्वपल्याण पुरिसुतसारो रिसीहाणा । पुरिस पुरिस-वस्पाघहत्यीणं पुण्डरीआणं 'चित्र से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान' (१) नमुऽत्थुण' शब्द प्रत्येक विशेषण के साथ जोड़ें तथा 'नमस्कार हो' ऐसा भाव समझें । 'अरिहंताणं' आठ प्रातिहार्यों के वैभव से युक्त बारह पर्षदा शोभित अरिहंत प्रभु के चरणों में नमन । (२) भगवंताणं' आठ प्रातिहार्यों के साथ केवलज्ञानी अरिहंत भगवंत को विहारकरते हए देखकर उनके चरणों में नमन ।(३) आइगराणं गणधरभगवंतों को त्रिपदी देते हुए श्रुतप्रवचन का प्रारंभ करते हुए देखकर नमन करना । तित्थयराणं गणधर भगवंतो को वासचूर्ण का क्षेप करके तीर्थ की स्थापना करनेवाले भगवन्त को देखकर नमन।(४) सयंसंबुद्धाणं गुरु के बिना स्वयं प्रतिबोध प्राप्त प्रभुजी सर्वविरति का उच्चारण करते हैं, यह देखकर उन्हें नमन । (५) पुरिसुत्तमाणं'= खान में पड़े हुए जात्यरत्न के समान अनादि निगोद से आज तक प्रभुजी को उत्तम देखने हेतु (चरणों में नमन) । (६) 'पुरिस-सीहाणं' = प्रभुजी उपसर्ग-परिसह को सहन करने में सिंह के समान पराक्रमी देखकरनमन करना।(७) पुरिस-वर-पुंडरियाणं'कर्म रूपी कीचड में उगे हुए, भोगरूपी जल से पले हुए, फिर भी दोनों से ऊंचे कमल के समान निर्लिप्त रहनेवाले प्रभुजी को देखकर उनके चरणों में नमन करना । (८) 'पुरिस वर गंधहत्थीणं' जिस प्रकार गंधहस्ती के आते ही क्षुद्र हाथी भाग जाते हैं, उसी प्रकारपरमात्मा जहाँ विहारकरें, वहाँ १२५ योजन तक महामारी-हैजा मूषक-रोग-दुर्भाग्य आदि भाग जाते हैं। यह देखकरनमन।(९) लोगुत्तमाणं भव्य जीवों में उत्तम प्रभुजी को देखकर उन्हें नमन । (१०) 'लोगनाहाणं'चरमावर्त्त में स्थित भव्य जीवों को आत्मगुणों का संयोग करानेवाले तथा प्राप्त गुणों का रक्षण करनेवाले ऐसे योग-क्षेम करनेवाले प्रभुजी सच्चे अर्थों में नाथ हैं, यह देखकरनमन ।(११) लोग-हिआणं' भव्यजीव रूपी लोक का अनवरत आत्महित करनेवाले प्रभूजी को देखकर नमन । (१२) 'लोग-पर्डवाणं'=भव्यजीव रूप लोगों के हृदय में दीप प्रज्वलित करनेवाले प्रभुजी के देखकर नमन । (१३) लोग-पज्जोअगराणं' = प्रभुर्ज गणधर भगवंत रूपी लोक में विशेष ज्ञान प्रदान करनेवाले वे रूप में देखकर नमन । (१४) 'अभयदयाणं'= समस जीवराशि को ७ भयों से मुक्त करनेवाले प्रभुजी को देखक नमन । (१५)'चक्खुदयाणं' = धर्म के प्रति आकर्षी करानेवाली दृष्टि देनेवाले प्रभुजी को देखकर नमन । (१६ 'मग्गदयाणं' धर्म का मार्ग दिखलाने वाले तथा अनुकू सरल चित्त धारण करनेवाले प्रभुजी को देखकर नमन (१७) सरण दयाणं' सरल चित्त में तत्त्वजिज्ञासा पै करनेवाले तथा रक्षण करनेवाले प्रभुजी को देखकर नमन (१८) बोहिदयाणं'तत्त्व का सच्चा ज्ञान दिलानेवा प्रभुजी को देखकरनमन।(१९) धम्मदयाणं'चारित्र को प्रदान करनेवाले प्रभुजी को देखकर नमन । (२. 'धम्मदेसयाणं'=धर्म देशना के द्वारा भवसंताप को हरनेव प्रभुजी को देखकर नमन । (२१) 'धम्मनायगाणं' प्रभुजी नट के समान धर्मनेता नहीं होते, बल्कि स परिसह-उपसर्गों के बीच तप-संयम-ध्यान स्वरुप धर्म उत्कृष्ट आराधना करके धर्मनेता बनते हैं । (२ 'धम्मसारहीणं' विषय कषाय में अनासक्त भव्य जीवों मोक्ष की ओर प्रयाण करानेवाले प्रभुजी को देखकर ना (२३)'धम्मवर-चाउरंत-चक्कवड़ीणं'= धर्म में प्रधान चारगति का अन्त करनेवाले अतः श्रेष्ठ चक्रवर्ती स प्रभुजी को देखकर नमन। o rating पदवाण शामसवाणी लोगृत्तमाणं बम्मनायगाणं CITA लोपहियाण धम्ममारहाण लोग-पज्जोगरार्ण व SHAधी लोगाईलाण एपरिपाइरन चक्कवीण ROEducation inta For Private & Personal use only
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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