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________________ १३. श्री जं किंचि सूत्र पद आदान नाम : श्री जकिंचि सूत्र | विषय: गौण नाम : तीर्थ वंदना स्वर्ग, पाताल तथा मनुष्यलोक में स्थित संपदा देववंदन, चैत्यवंदन तथा गुरु-अक्षर :३ समस्त तीर्थ व उनमें प्रतिक्रमण के समय यह लघु-अक्षर :२९ विराजमान प्रतिमाओं सूत्र बोलते-सुनते अपवादिक मुद्रा। सर्व अक्षर : ३२ को वंदना। समय की मुद्रा। छंद का नाम : गाहा, राग : "जिण जम्म समये मेरु सिहरे" (स्नात्र पूजा) मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पद क्रमानुसारी अर्थ जं किंचि नाम तित्थं, जङ्-(जम्)-किम् (किन्)-चि नाम-तित्-थम्, जो कोई भी नामरूपी तीर्थ हो सग्गे पायालि माणुसे लोए।। सग्-गे पाया-लि माणु-से लोए। स्वर्ग, पाताल और मनुष्य लोक में जाई जिण बिंबाई, जाइम् जिण-बिम्-बाइम्, जो भी जिन प्रतिमाएँ ताई सव्वाई वंदामि ॥१॥ ताइम्-सव-वाइम् वन्-दामि ॥१॥ उन सब को मैं वंदन करता हूँ। १. गाथार्थ : स्वर्ग, पाताल और मनुष्य लोक में जो कोई भी नाम रूपी तीर्थ हो, जो भी जिन प्रतिमाएँ हो, उन सब को मैं वंदन करता हूँ।१. उपयोग के अभाव से होते ४५ लाख योजन प्रमाण अढाई द्वीप - मनुष्य लोक का नकशा अशुद्ध उच्चारो के सामने शुद्ध उच्चार १. जंबुद्वीप = १ लाख योजन धातकी खंड = ८ लाख अशुद्ध शुद्ध २ लवण समुद्र योजन माणसे लोओ माणुसे लोओ ४ लाख योजन (दोनो ओर २-२) जाई जिणबिंबाई जाइंजिणबिंबाई (दोनों ओर २-२)KA ताई सव्वाईताई सव्वाई तीन लोक में स्थित जिनबिंबों का विवरण पाताले यानि बिंबानि, यानि बिंबानि भूतले । स्वर्गेऽपि यानि बिंबानि, तानि वंदे निरन्तरम् ॥ ___उर्ध्वलोक में १,५२,९४,४४,७६०, अधोलोक में १३,८९,६०,००,००० तथा तीर्छालोक में जंबूद्वीप में ६३५ चैत्यों में, धातकीखंड में १२७२ चैत्यों में पुष्करावर्त्त द्वीप में १२७६ चैत्यों में, नंदीश्वरद्वीप में ६८ चैत्यों में, रूचकद्वीप में ४ चैत्यों में तथा कुंडल द्वीप में ४ चैत्यों में (कुल ३२५९ चैत्यों में)३,९१,३२० प्रतिमाएं हैं । ये सब मिलाकर १५,४२,५८,३६,०८० जिनप्रतिमाएं तथा इसके अतिरिक्त अशाश्वत चैत्यों में विराजमान जिनप्रतिमाओं अर्ध को नजर के समक्ष लाकर भक्तिभावना उत्साह के कालोदधि पुष्कर द्वीप साथ उत्कृष्ट बहुमान भाव उत्पन्न कर कृतज्ञता भाव को समुद्र = १६ लाख १६ लाख योजन योजन ( दोनों ओर ८-८) प्रगट करने के साथ ही अनंतानंत पाप कर्म का नाश ( दोनों ओर ८-८) करने के लिए बारम्बार वंदना करनी चाहिए। M HD SO STAREEFटा ITHOUdith કુલાધિ (સમુ SHIPnish Man chan । Gledon) International For Private & Personal use only www.jainelibrary.orgi
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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