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________________ ६. उर्ध्व-पप्फोडा (=पुरिम) पडिलेहण विधि (३) दूसरी परत की दृष्टि पडिलेहणा करने के बाद ऊर्ध्व अर्थात् ऊपर की ओर से विस्तृत मुहपत्ति का सबसे पहले बाए हाथ तरफ का भाग तीन बार घुमाएँ, उसे पहला 'तीन उर्ध्व पप्फोडा (पुरिम) कहा जाता है। मन में बोलें। २. सम्यक्त्व मोहनीय ३. मिश्र मोहनीय ४. मिथ्यात्व मोहनीय परिहरु । (४) उसके बाद (दृष्टि पडिलेहणा में जैसा कहा गया है, उसके अनुसार) मुंहपत्ति की दूसरी परत बदलकर उसका सूक्ष्म दृष्टि से निरीक्षण कर दाहिनी ओर का भाग तीन बार फिराए, यह दूसरा 'तीन ऊर्ध्वपप्फोडा (पुरिम) कहलाता है, उस समय मन में बोलें.... ५. कामराग ६. स्नेहराग ७. दृष्टिराग परिहरूं। इस प्रकार पहला तीन तथा दूसरा तीन, कुल मिलाकर छह ऊर्ध्वपप्फोडा (पुरिम-प्रस्फोटक) कहलाता है । (५) मुहपत्ति का मध्यभाग बाए हाथ पर रखकर, बीच का परत पकड़कर उसे परत कर । (यहा से मुहपत्ति को समेटना शुरु होता है।) (९) अक्खोडा और (९) पक्खोडा पडिलेहण विधि (९) अक्खोडा के बाद मध्यभाग का छोड़ दाहिने हाथ से इस प्रकार खींच लें कि दो समान परत बन जाए । तथा वह (दो परतोंवाली मुहपत्ति) दृष्टि के समक्ष आ जाए। उसके बाद तुरन्त ही उसके तीन परत कर दाहिने हाथ की चार ऊगुलियों की तीन अन्तराओं में दबा लें और इस प्रकार तीन परत की गई मुहपत्ति को बाएं हाथ की हथेली पर हथेली को स्पर्श न करे, इस प्रकार प्रथम तीन बार किनारे तक ले जाए और इस प्रकार तीन बार बीच-बीच में आगे कहलानेवाले पक्खोडा करते हुए तीन-तीन बार अन्दर लें। इसे ९ अक्खोडा, ९ आखोटक अथवा ९ आस्फोटक कहा जाता है ।(उसमें ग्रहण करने के कारण इसे स्पर्श कराए नहीं। ) (९) पक्खोडा (प्रमार्जना): ऊपर कहे अनुसार पहली बार किनारे की तरफ चढते हुए तीन अक्खोडा कर नीचे उतरते समय हथेली को मुहपत्ति स्पर्श करे, इस प्रकार (मुहपत्ति के द्वारा) तीन बार बाई हथेली पर फिराए, वह पहली ३ प्रमार्जना । उसके बाद (किनारे की ओर चढ़ते हुए ३ अक्खोडा कर) दूसरी बार उतरते हुए ३ प्रमार्जना और उसी प्रकार (बीच में ३ अक्खोडा कर) पुनः तीसरी बार ३ प्रमार्जना करें, यह ९ प्रमार्जना, ९ पक्खोडा अथवा ९ प्रस्फोटक कहलाता है। ऊपर कहे अनुसार ६ प्रस्फोटक इससे अलग माने । कारण कि विशेष रूप से ६ ऊर्ध्व पप्फोडा अथवा ६ पुरिम कहलाता है, परन्तु प्रसिद्धि में ९ पक्खोडा माना जाता है. वह तो इस ९ प्रमार्जना का नाम है। यह ९ अक्खोडा तथा ९ पक्खोडा तिग तिग अंतरिया अर्थात् परस्पर तीन-तीन के अन्तर से होता है। उसके अनुसार प्रथम हथेली पर चढते हुए ३ अक्खोडा करें, उसके बाद हथेली के ऊपर से उतरते हुए पक्खोडा करें, उसके बाद पुनः ३ अक्खोडा, पुनः ३ पक्खोडा, पुनः ३ अक्खोडा, पुनः ३ पक्खोडा, इस अनुक्रम से ९ अक्खोडा तथा ९ पक्खोडा परस्पर अंतरित माना जाता है । अथवा अक्खोडा के अन्तर से पक्खोडा भी माना जाता है। ८.सुदेव ९. सुगुरु १०. सुधर्म आदरूं। (६)सुदेव, सुगुरु, सुधर्म के प्रति हमारे अन्दर श्रद्धा की भावना आए, ऐसी इच्छा है । अतः मुहपत्ति को ऊगलियों के अग्रभाग से अन्दर की ओर लाने की क्रिया की जाती है, उसमें पहले मुंहपत्ति ऊँगली के अग्रभाग पर रखें और उस समय ',सुदेव' बोलें और दूसरी बार हथेली के मध्य स्थान पर 'सुगुरु' बोलें और तीसरी बार महपत्ति को हाथ के किनारे तक लाए समय 'सुधर्म' बोलें, जिससे आगे कुहनी तक पहुचने पर 'आदरूं' शब्द बोलते हुए मुँहपत्ति हाथ को स्पर्श नहीं करनी चाहिए। ___ (७) अब उपर्युक्त विधि से विपरीत मुँहपत्ति को किनारे से ऊँगलियों की नोंक तक घिसते हुए ले जाएँ, उस समय जिस प्रकार झटक कर कुछ निकालते हों, उस प्रकार मुँहपत्ति घिसते हुए ले जाएँ तथा मन में बोलें। ११. कुदेव १२. कुगुरु १३. कुधर्म परिहरूं। (यह एक प्रकार की प्रमार्जना विधि है। अतः उसकी क्रिया भी उसी प्रकार रखी जाती है।) (८) अब मुंहपत्ति के तीनों परतों को ऊगली के अग्रभाग से हथेली के किनारे तक मुहपत्ति थोड़ा ऊपर रखकर अन्दर की ओर लें जाएँ और बोलें। १४. ज्ञान १५. दर्शन १६. चारित्र आदरूं। (ये तीन वस्तुएँ हमारे अन्दर आएं, इसके लिए इसका व्यापक-न्यास किया जाता है। (९) अब ऊपर से उलटी, अर्थात हथेली के किनारे से हाथ की उंगलियों तक मुंहपत्ति घिसते हुए ले जाएँ, और बोलें.. १७. ज्ञान-विराधना १८. दर्शन-विराधना १९. चारित्र-विराधना परिहरु (ये तीन वस्तुएँ बाहर निकालनी है, अतः उसे घिसकर प्रमार्जन किया जाता है।) २०. मनगुप्ति २१. वचनगुप्ति २२. कायगुप्ति आदरूं। (ये तीन वस्तुएँ हमारे अन्दर आए, इसके लिए उसका व्यापक न्यास किया जाता है।) (१०) अब मुँहपत्ति को हथेली के किनारे से हाथ की ऊंगलियों तक घिसते हए ले जाए और बोलें... २३. मनदंड २४. वचनदंड २५. कायदंड परिहरूं। (ये तीन वस्तुएं बाहर निकालनी है, अतः उनका प्रमार्जन किया जाता है।) Pri tem Karoly.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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