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सामायिक पारते समय की मुद्रा ।
मूल सूत्र सामाइय-वय-जुत्तो, जाव मणे होइ नियम संजुत्तो ।
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समणो इव सावओ हवइ जम्हा । एएण कारणेणं,
बहुसो सामाइअं कुज्जा ॥२॥
अशुद्ध
छिनइ
जातिया
११. श्री सामाइय-वयजुत्तो सूत्र
: श्री सामाइय वयजुत्तो सूत्र : सामायिक पारने का सूत्र
: २
: ८
: ८
गुरु-अक्षर
: ७
: ६७
लघु-अक्षर सर्व अक्षर
: ७४
छंद का नाम : गाहा; राग : मचकुंद चंपमालाइ ... ( स्नात्र पूजा)
उच्चारण में सहायक सामा- इय वय-जुत्-तो,
जाव मणे होइ नियम-सञ् (सन् ) - जुत्-तो ।
उक्कए एएण कारणेण
सामायिक व्रत (पच्चच्खाण ) से युक्त है । जब तक ( सामायिक व्रत धारी का) मन नियम (व्रत) से युक्त होता है, अशुभ कर्मों को नाश करता है सामायिक जितनी बार करता है । १.
छिन्नड़ असुहं कम्मं, सामाइय जत्तिया वारा ॥ १ ॥
छिन्- नइ असु-हम् कम्-मम्, सामा-इअजत् तिया-वारा ॥१॥
गाथार्थ : जब तक (सामायिक व्रत धारी का) मन सामायिक व्रत के नियम से युक्त होता है और जितनी बार सामायिक करता है, (तब तक और उतनी बार वह) सामाइअम्मि उकए,
अशुभ कर्मों का नाश करता है । १. सामा-इ-अम्-मिउ कए, सम-णो इव साव- ओ हवइ जम्-हा। ए-ए-ण कारणे- णम्,
इस कारण सामायिक
बहु- सो सामा-इ- अम् कुज्-जा ॥२॥
अनेक बार करना चाहिये । २.
गाथार्थ : सामायिक व्रत लेने पर, श्रावक जिस कारण श्रमण के समान होता है इस कारण सामायिक अनेक बार करना चाहिये । २.
सामायिक विधिए लीधुं, विधिए पार्यु, विधि करता जे कोई अविधि हुई होय ते सवि हु मनवचन काया एकरी मिच्छा मि दुक्कडं ॥ दस मनना, दस वचनना, बार कायाना, आ बत्तीस दोषों मांथी जे कोई दोष लाग्यो होय ते सवि हुं मन-वचन-कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं ॥ सामायिक में त्याग करनेवाले ३२ दोष
भाषण करे (५) कलह करे । (६) आओ जाओ कहे (७) गाली बोले (८) बालक को खिलाए ( ९ ) विकथा करे तथा (१०) उपहास करे । काया के बारह दोष : (१) आसन चपल हो (२) चारों दिशाओं में देखे (३) सावद्य काम करे (४) आलस्य करे (५) अविनय पूर्वक बैठे (६) पीठ टिकाकर बैठे (७) मैल उतारे (८) अंगों को खुजलाए ( ९ ) पैरों पर पैर चढाए (१०) अंग संपूर्ण खुले रखे ( ११ ) अंग संपूर्ण ढँककर रखे (१२) नीद ले । (ये सभी मिलकर बत्तीस दोष सामायिक में अयतना से लगते हैं, अतः इनका त्याग करना चाहिए ।)
शुद्ध
छिन्नइ जत्तिया
उकए एएण कारणेणं
हु वचनना
वचन
मन के दस दोष : (१) वैरी को देखकर द्वेष करे (२) अविवेक चिंतन करे ( ३ ) अर्थ का चिंतन न करे (४) मन में उद्वेग धारण करे (५) यश की इच्छा करे ( ६ ) विनय न करे (७) भय का चिंतन करे (८) व्यापार का चिंतन करे (९) फल का संदेह रखे तथा (१०) उपहास करे । वचन के दस दोष : (१) कुवचन बोले (२) हुंकार करे ( ३ ) पाप का आदेश दे (४) मिथ्या
उच्चारण शुद्धि से सम्बन्धित सूचनाएँ १. ‘करेमि भंते !' सूत्र में ‘नियमं ' आता है तथा इस सूत्र में 'नियम' आता है, इसका ध्यान रखना चाहिए।
२. 'हुं' का अर्थ 'स्वयं' नहीं, बल्कि 'सचमुच' होता है । अतः इसका उपयोग रखना चाहिए।
आदान नाम गौण नाम
गाथा
पद
संपदा
विषय :
बारंबार सामायिक करने से होनेवाले
लाभ तथा उसमें
लगे हुए दोषों की
क्षमा याचना ।
पद क्रमानुसारी अर्थ
सामायिक व्रत लेने पर
श्रावक जिस कारण श्रमण के समान होता है
सूत्र रचना से सम्बन्धित कुछ तथ्य पहली दो गाथाएँ प्राकृत में हैं तथा अन्तिम दो गाथाएँ गुजराती में हैं। वर्धमानसूरिकृत 'आचार - दिनकर', श्री महिमासागरजी कृत 'षडावश्यक विवरण' आदि जिन पाठों के अन्तिम वाक्यों का गुजरातीकरण किया गया है। वह १९वीं सदी से इस सूत्र के बाद बोलने की परम्परा शुरू हुई हो, ऐसा प्रतीत होता है।
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