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________________ १०. श्री करेमि भंते सूत्र 'सामायिक दंडक' सूत्र श्रवण (सुनते ) तथा बोलते समय की विनम्र मुद्रा । आदान नाम : श्री करेमि भंते सूत्र | विषय : गौण नाम : पच्चक्खाण सूत्र सावद्य प्रवृत्ति के गुरु-अक्षर : ७ लघु-अक्षर : ६९ त्याग स्वरूप सर्व अक्षर : ७६ प्रायः शाश्वत सूत्र है। मूल सूत्र उच्चारण में सहायक पद क्रमानुसारी अर्थ करेमि भंते ! सामाइअंकरे-मि-भन्-ते ! सामा-इ-अम्हे भगवन् ! मैं सामायिक करता हूँ। सावज्जं जोगं पच्चक्खामि, सावज्-जम्-जोगम् पच्-चक्-खामि; सावध (पापवाली) योग (प्रवृत्त) का मैं जाव नियमं पज्जुवासामि, जाव निय-मम् पज-जु-वासा-मि, जब तक मैं नियम का सेवन करता हूँ। दुविहं तिविहेणं, दुवि-हम् तिवि-हे-णम्, दो प्रकार से और तीन प्रकार से, मणेणं, वायाए, काएणं, मणे-णम् वाया-ए, काए-णम्, मन से, वचन से और काया (शरीर) से न करेमि न कारवेमि, न करे-मि न कार-वेमि, न करूं और न कराऊँ। तस्स भंते ! पडिक्कमामि तस-स भन-ते ! पडिक-कमा-मि उनका (उन पाप प्रवृत्तियों का) हे भगवन् ! मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। निंदामि गरिहामि, निन्-दामि-गरि-हामि, मैं निंदा करता हूँ , मैं गर्दा करता हूँ। अप्पाणं वोसिरामि। अप्-पा-णम् वोसि-रामि। (इस प्रकार ) अपनी आत्मा को पाप क्रिया से छुडाता हुँ। अशुद्ध गाथार्थ : हे भगवन् ! मैं सामायिक करता हूँ। जब तक मैं नियम का पालन करता हूँ। सावजं सावज्जं (तब तक) सावध योग का दो प्रकार से - न करू और न कराऊँ और तीन प्रकार से - मन, वचन नियम नियम और काया से पच्चक्खाण करता हूँ, हे भगवन् । उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। मैं गर्दा करता हूँ और तिविएणं तिविहेणं (इस प्रकार ) मैं अपनी आत्मा को पाप क्रियासे छुडाता हूँ। पक्किममि पडिक्कमामि इस सूत्र का गूढ़ रहस्य 'भंते !' बोलते समय प्रश्न पूछते हों, ऐसा वे 'जाव नियम' के बदले 'जावज्जीवाए' तथा 'दुविहं तिविहेण' के भाव आना चाहिए। बदले 'तिविहं तिविहेण' तथा 'न करेमि न कारवेमि' के साथ 'करंतंपि सामायिक में 'जाव नियमं', पौषध में 'जाव अन्नं न समन्नुजाणामि' बोलते हैं। पोषहं' तथा वाचना-व्याख्यान श्रवण करते. आरंभ-समारंभ का त्याग सामायिक लेनेवाले गृहस्थ करने के कारण समय 'जाव सुयं'(=जब तक व्याख्यान- 'साधु जैसे' भी कहलाते हैं। वाचना चलती रहे, तब तक) बोला जाता है।. श्री तीर्थंकर परमात्मा दीक्षा ग्रहण करें तब यह सूत्र 'भंते' के अतिरिक्त पू. साधु-साध्वीजी भगवन्त दीक्षा ग्रहण करते साधु योग्य पच्चक्खाण करने के कारण अतिमहिमावान् कहलाता है। समय जीवनभर का सामायिक लेने के कारण इसके कारण प्रायः शाश्वत भी कहलाता है। छह आवश्यक का गर्भित अर्थ 'करेमि भंते में (१) 'मैं सामायिक करता हूँ।' (=करेमि सामाइअं शब्द के द्वारा (४) 'मैं पापों की क्षमा मांगता हूँ।(= समता भाव की प्राप्ति)= सामायिक-आवश्यक। पडिक्कमामि) = प्रतिक्रमण - आवश्यक । (२) 'हे भगवंत' = (भंते) शब्द के द्वारा चौबीस भगवन्तों की (५) 'हे प्रभु ! मैं इस सामायिक में पापयुक्त स्तुति = चउवीसत्थो-आवश्यक। कार्य नहीं करने की प्रतिज्ञा करता हूँ।'(= (३) 'हे भगवंत ! मैं आपको नमस्कार कर पाप नहीं करने की सावज्जं जोगं पच्चक्खामि) = प्रतिज्ञा करता हूँ।'(तस्स भंते !)= वंदन-आवश्यक। पच्चक्खाण - आवश्यक। Jinaugation ७१ lervore
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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