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________________ • इस सूत्र में अनेक अक्षरों के साथ कुल ५०'० 'अनुस्वार आते हैं । अतः ध्यानपूर्वक उच्चारण करना चाहिए। • इस सूत्र में 'च' ग्यारह बार आता है। दस बार 'च' का अर्थ ' और' तथा एक बार (सुविहिंच पुप्फदंतं) का अर्थ ' अथवा ' होता है । • इस सूत्र में श्री सुविधिनाथ भगवान का दूसरा नाम 'पुष्पदंत 'कहा गया है। दूसरी-तीसरी तथा चौथी गाथा में चौबीस प्रभुजी का क्रम नाम १. २. श्री लोगस्स सूत्र के साढ़े तीन वलय शरीर के सात चक्रों पर साढ़े तीन वलय में कुंडलिनी नामक सूक्ष्म सुषुप्त शक्ति को जागृत करने के लिए तथा कायोत्सर्ग का फल प्राप्त करने के लिए इस तरह ध्यान करना चाहिए । मूलाधार आदि सात चक्रों में साढ़े तीन वलय के सहारे चौबीस तीर्थंकर परमात्मा का स्मरण किया जाता है । उसमें प्रथम चित्र के अनुसार पहले वलय में श्री ऋषभदेव भगवान से श्री सुपार्श्वनाथ भगवान तक (सात भगवान) का स्मरण कर अंत में 'जिणं' शब्द का प्रयोग किया गया है। दूसरे वलय में श्री चंद्रप्रभस्वामी से श्री अनंतनाथ भगवान तक (सात भगवान ) का स्मरण कर उसके अंत में सात चक्रों के नाम-स्थान तथा वलयों ३. ४. ५. ६. ७. उच्चारण से सम्बन्धित सूचनाएँ मूलाधार चक्र स्वाधिष्ठान चक्र मणिपूर चक्र अनाहत चक्र विशुद्ध चक्र आज्ञा चक्र सहस्त्रार चक्र 190 Jain uucation International स्थान पीछे के भाग में नीचे नाभि के नीचे आगे नाभि के स्थान पर हृदय के स्थान पर कंठ के स्थान पर ललाट के स्थान पर शिखा के स्थान पर १ला वलय उसभ मजिअं संभव मभिणंदणं सुमई पउमप्पहं सुपासं १. दर्शन : १ला वलय पूरा होते ही सातवें भगवान श्री सुपार्श्वनाथ आए, अतः सम्यग्दर्शन गुण के पास आए। (सुपासं= सुन्दर के पास ) २. ज्ञान : २ रा वलय पूरा होते ही चौदहवें भगवान श्री अनंतनाथ आए। (अनंतनाथ = अनंतज्ञान ) समावेश किया गया है। उसमें 'वंदे', 'वंदामि' बोलते समय मस्तक विशेष झुकाना चाहिए। • श्री आदेश्वरदादा, श्री पद्मप्रभु तथा श्री चन्द्रप्रभु उच्चारण अशुद्ध है । • श्री आदीश्वरदादा, श्री पद्मप्रभस्वामी तथा श्री चन्द्रप्रभस्वामी उच्चारण शुद्ध है । से सम्बन्धित जानकारी । 'जिणं' शब्द रखा गया है। तीसरे वलय में श्री धर्मनाथ से श्री नमिनाथ तक ( सात भगवान ) का स्मरण कर अंत में 'जिणं' शब्द रखा गया । चौथे आधे वलय में श्री अरिष्ट नेमिनाथ से श्री वर्धमान स्वामी भगवान तक ( तीन भगवान) का स्मरण किया गया है। प्रथम तीन वलय के अन्त में 'जिणं' शब्द का प्रयोग होने के कारण अंतिम ( आखिरी ) तीन भगवान को चौथे आधे वलय में स्मरण किया जाता है। में २४ भगवन्तों का विवरण For Private usonal u २रा वलय ३रा वलय चंदप्पहं धम्मं सुविहिंच पुष्पदंतं संतिं सीयल कुंथुं सीज्जंस अरं वासुपूज्जं मल्लि विमल मणतं साढ़े तीन वलय में दर्शन, ज्ञान, चारित्र तथा तप की आराधना । मुणिसुव्वयं नमि ४था वलय रिट्टनेमिं पासं वद्धमाणं ३. चारित्र : ३ रा वलय पूरा होते ही इक्कीसवें भगवान श्री नेमिनाथ आए। (नमि= नम्रता = सम्यक् चरित्र ) ४. तप : ४ था वलय आधा पूरा होते ही चौबीसवें भगवान श्री महावीरस्वामी आए। (महावीर पूर्ण तपस्वी सम्यक् तप ) = www.jain ary.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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