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________________ जियां जिणं ि विशुद्धारव्या चक्र षोडशदल पद्म -सुपासं, सुषुम्नावज्रा चित्रिणीब्रह्मनाडी कुमारीका PH: २४ जिननाम देहस्थ चक्रस्थानो में न्यास की विधि Jain Education International मूलाधार चक्र चतुर्दलपम चक्रस्थान = कंठ शमारिका આ अमृत घराती ध्यानफल : उत्तम वक्ता, काव्य रचना में समर्थ शांत चित्त आरोग्यवान बनते हैं। सुषुम्नाबज्रा चित्रिणीब्रह्मनाडी स्वाधिष्ठान चक्र षद्दल पद्म श्री पा र्श्व नाथ इल्तला कालधर्मिनी ध्यानफल: वक्ता श्रेष्ठ पुरुष विनोदी आनंदित आरोग्य सिद्धि होती है। सुषुम्ना बज्रा चित्रिणी ब्रह्मनाडी प्रभु चक्रस्थान कमर हाड he ૐ सूत्रा शंखीनी ध्यानफल : अविकारी संत पुरुष बनते है। आज्ञाख्य चक्र द्विदल पद्म चक्रस्थान = उदर सुषुम्ना वज्रा चित्रिणीब्रानाडी विश्वा इवन्तिका अनाहत चक्र द्वादशदल पद्म चक्रस्थान - नेत्र सुषुम्ना वज्राचित्रिणीब्रह्मनाडी क्ष गांधारी हस्ति जिह्व ध्यानफल : वाक्य सिद्धि 8 For Private & Personal Use Only मणिपूर चक्र दशदल पद्म इल्लिका युक्ता पीता नीला वृंदा' शारदा ध्यानफल : वचन रचना में समर्थ, योगीश्वर, ज्ञानवान इन्द्रिय विजेता बनते है। अतीता ॐ काही सुषुम्ना वज्राचित्रिणीब्रानाडी मुनि चक्रस्थान = हृदय शुक्र ध किगोलिका ध्यानफल : सरस्वती की पूर्ण कृपा होती है। तारा शून्य चक्र सहस्त्रदल पद्म चक्रस्थान = आंतर तारका माधवी चक्रस्थान = मस्तिष्क ध्यानफल आकाशगामी समाधि युक्त महातपस्वी होते हैं। ६९ wwww.jainelibrary.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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