SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. स्वरुप संपदा तावकार्य, ठाणेणंमोणेणं, तावकायम,ठाणे-णम्,मोणे-णम्, । तब तक स्थान पूर्वक (एक स्थान में स्थिरता पूर्वक),मौन पूर्वक, झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥ झाणे-णम् अप्-पा-णम्-वोसि-रामि ॥५॥ ध्यान पूर्वक अपनी काया का त्याग करता हूँ।५. गाथार्थ : तब तक अपनी काया को स्थिरता पूर्वक, मौन पूर्वक(और) ध्यान पूर्वक त्याग करता हूँ।५. उपयोग के अभाव से होते १९ दोषों का त्याग कर कायोत्सर्ग करना चाहिए । वह इस प्रकार है अशुद्ध उच्चारो के सामने शुद्ध उच्चार (१) घोड़े की भांति एक पैर ऊँचा, टेढा रखना, वह घोटक दोष (२) लता के अशुद्ध शुद्ध समान शरीर को हिलाए, वह लता दोष (३) मुख्य स्तम्भ को टिकाकर खड़ा रहे, अनत्थ अन्नत्थ वह स्तंभादि दोष (४) उपर बीम अथवा रोशनदान हो, उससे सिर टिकाकर रखे, खाससिएणं खासिएणं वह माल दोष (५) बैलगाड़ी में जिस प्रकार सोते समय अंगूठे को टिकाकर बैठा जंभाएणं जंभाइएणं जाता है, उस प्रकार पैर रखे, वह उद्धित दोष (६) जंजीर में जिस प्रकार पैर रखे भम्मलीए भमलीए जाते हैं, उस प्रकार पैरों को चौड़ाकर रखे, वह निगड दोष (७) नग्न भील के सुहमेहि सुहमेहि समान गुप्तांग पर हाथ रखे, वह शबरी दोष (८) घोड़े के चौकड़े के समान संचालेही संचालेहि रजोहरण(चरवले )की कोर आगे रहे, इस प्रकार हाथ रखे, वह खलिण दोष (९) एवमाई आगारहि एवमाइएहिं आगारेहि नव विवाहित वधू के समान मस्तक नीचे झुकाए रखे, वह वधू दोष (१०) माणेणं मोणेणं नाभि के ऊपर तथा घुटने के नीचे लम्बे वस्त्र रखे, वह लंबोत्तर दोष (११) वोसरामि वोसिरामि मच्छर के डंक के भय से, अज्ञानता से अथवा लज्जा से हृदय को स्त्री के समान ढंककर रखे, वह स्तन दोष (१२) शीतादि के भय से साध्वी के समान दोनों कंधे ढंककर रखे अर्थात् समग्र शरीर आच्छादित रखे, वह संयति दोष (१३) आलापक गिनते समय अथवा कायोत्सर्ग की संख्या गिनते समय ऊगली तथा पलकें चलती रहे, वह भूअङ्गुलि दोष, (१४) कौए के समान इधर-उधर झांकता रहे, वह वायस दोष (१५) पहने हए वस्त्र पसीने के कारण मलिन हो जाने के भय से कैथ के पेड की तरह छिपाकर रखे, वह कपित्थ दोष । (१६) यक्षावेशित के समान सिर हिलाए, वह शिरःकंप दोष (१७) गूंगे के समान हं हं करे, वह मूक दोष (१८) आलापक गिनते समय शराबी के समान बड़बड़ाए, वह मदिरा दोष तथा (१९) बन्दर के समान इधर-उधर देखा करे, होंठ हिलाए, वह प्रेक्ष्य दोष कहलाता है। साधु भगवंत तथा श्रावक को कायोत्सर्ग के १९ दोष लगते हैं । साध्वीजी भगवंत को स्त्री जाति होने के कारण शरीर की बनावट भिन्न प्रकार की होने से १०३, ११वें तथा १२वें दोष के अतिरिक्त १६ दोष लगते हैं। श्राविका को भी इन्हीं कारणों से ९, १०, ११वें तथा १२वें दोष के अतिरिक्त १५ दोष लगते हैं। जिनका त्याग करना आवश्यक है। Jaiyo imemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy