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८. श्री अन्नत्थ सूत्र
आदान नाम : श्री अन्नत्थ सूत्र गौण नाम : आगार सूत्र
विषयः पद : २८
कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा, संपदा
आगार (छूट, अपवाद),
गुरु-अक्षर : १३ चैत्यवंदन तथा प्रतिक्रमण में रत्नत्रयी की 'अप्पाणं वोसिरामि' | लघु-अक्षर : १२७
समय की मर्यादा देववंदन के समय यह शुद्धि के लिए यह सूत्र बोलने के
सर्व अक्षर : १४० सूत्र बोला जाता है। बोलते सुनते समय की मुद्रा। बाद की मुद्रा
तथा स्वरूप का वर्णन। १. एकवचनान्त आगार संपदा मूल सूत्र उच्चारण में सहायक
पद क्रमानुसारी अर्थ अन्नत्थ ऊससिएणं, अन्-नत्-थ ऊस-सि-ए-णम्, इस के सिवाय श्वास लेने से, नीससिएणं, नीस-सि-ए-णम्,
श्वास छोडने से, खासिएणं, छीएणं, खासि-ए-णम्, छीए-णम्, खांसी आने से, छींक आने से, जंभाइएणं, उड्डुएणं, जम्-भा-इए-णम्-उड्डु -ए-णम्, जम्हाई आने से, डकार आने से, वाय-निसग्गेणं, वाय-नि-सग्-गे-णम्,
अधोवायु निकलने से, भमलीए पित्त-मुच्छाए ॥१॥ भम-लीए पित्-त मुच्-छाओ॥१॥ चक्कर आने से पित्त विकार के कारण मूर्छा आने से । १. गाथार्थ : इसके सिवाय श्वास लेने से, श्वास छोड़ने से, खांसी आने से, छींक आने से, जम्हाई आने से, डकार आने से, अधो वायु निकलने से, चक्कर आने से, पित्त विकार के कारण मूर्छा आने से । १.
२. बहुवचनान्त संपदा सुहुमेहंअंग-संचालेहि, सुहु-मे-हिम्-अङ्ग-सञ् (सन्)-चा-लेहिम्, सूक्ष्म रूपसे अंग हिलने से, सुहुमेहिखेल-संचालेहि, सुहु-मे-हिम्-खेल-सञ्(सन् )चा-लेहिम्, सूक्ष्म रूपसेकफ और वायुके संचालनसे, सुहुमेहिं दिट्ठि-संचालेहिं॥२॥ सुहु-मे-हिम्-दिट्-ठि-सञ् (सन् )-चा-लेहिम्।॥२॥ सूक्ष्म रूप से दृष्टिहिलने से।२. गाथार्थ : सूक्ष्म रूप से अंग संचालन से, सूक्ष्म रूप से कफ और वायु के संचालन से, सूक्ष्म रूप से दृष्टि के संचालन से ।२.
३. आगंतुक आगार संपदा एवमाइ एहिंआगारेहि,
एव-माइ-ए-हिम्आ गा-रे-हिम्, इत्यादि आगारों ( अपवादों) से अभग्गो अविराहिओ, अभग्-गो अवि-राहि-ओ,
अभंग अविराधित / अखंडित हुज्जमे काउस्सग्गो॥३॥ हुज्-ज मे काउस्-सग्-गो॥३॥
मेरा कायोत्सर्ग हो।३.
कोवा (गांधीनगर गाथार्थ : इत्यादि आगारों से मेरा कायोत्सर्ग अभंग और अविराधित हो ।३.
वि.३८२००९ ४. उत्सर्ग अवधि संपदा जाव अरिहंताणं भगवंताणं, जाव अरि-हन्-ताणम् भग-वन्-ताणम्, जब तक अरिहंत भगवंतों को नमुक्कारेणंन पारेमि ॥४॥ नमुक्-कारे-णम्न पारे-मि॥४॥ नमस्कार करने के द्वारा (कायोत्सर्ग) पूर्ण न करूं। ४. गाथार्थ : जब तक अरिहंतभगवंतो को नमस्कार करने के द्वारा (कायोत्सर्ग) पूर्ण न करु । ४.
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