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________________ ७ श्री तस्स उत्तरी सूत्र पद आदान नाम : श्री तस्स उत्तरी सूत्र । गौण नाम : उत्तरीकरण सूत्र विषयः पापो की विशेष संपदा : १ शुद्धि करने के लिए चैत्यवन्दन तथा देववन्दन प्रतिक्रमण में रत्नत्रयी गुरु-अक्षर : १० के समय यह सूत्र की शुद्धि हेतु यह सूत्र कायोत्सर्ग करने लघु-अक्षर : ३९ का संकल्प। बोलने की मुद्रा। बोलते-सुनते समय की मुद्रा।। सर्व अक्षर : ४९ । ८. प्रतिक्रमण संपदा मूल सूत्र । उच्चारण में सहायक पद क्रमानुसारी अर्थ तस्स उत्तरी करणेणं, तस्-स उत्-तरी-कर-णे-णम्, उन्ही की (उन पापों की / ईरियावहिया सूत्र में बताये पापों की) | फिर से विशेष शुद्धि करने के द्वारा, पायच्छित्त-करणेणं, पा-यच-छित्-त-करणे-णम् प्रायश्चित करने के द्वारा (विशेष आलोचना एवं निंदा करने के द्वारा), प्रायश्चितकरण का उपाय विसोही-करणेणं, विसो-ही-कर-णे णम्, विशुद्धि करने के द्वारा, विशोधीकरण का उपाय विसल्ली करणेणं, विसल्-ली-करणे-णम्, शल्य रहित करने के द्वारा, कायोत्सर्ग का प्रयोजन पावाणंकम्माणं निग्घायणट्ठाए, पावा-णम् कम्-माणम्, निग्-घा-यणट्-ठाए पाप कर्मों का संपूर्ण नाश करने के लिये ठामिकाउस्सग्गं ॥१॥ ठामि काउस्-सग्-गम्॥१॥ मैं कायोत्सर्ग करता हूँ।१. उपयोग के अभाव से होते अशुद्ध उच्चारो के सामने शुद्ध उच्चार गाथार्थ : उन ( पापों ) की फिरसे शुद्धि करने के अशुद्ध शुद्ध द्वारा, प्रायश्चित्त करने के द्वारा, विशुद्धि करने के द्वारा, शल्य पायछित कर्णणं । पायच्छित्त करणेणं रहित करने के द्वारा.पापकर्मों का संपर्ण नाश करने के लिये निग्घायण ठाए निग्घायणट्ठाए मैं कायोत्सर्गकरताह काउसगं काउस्सग्गं श्री तस्स उत्तरी सूत्र की महत्ता तथा इसके गूढ़ रहस्य का ज्ञान विराधना के पाप से लिप्त आत्मा ईरियावहियं' सूत्र से शुद्ध ३. अन्य कोई विकृति पैदा न हो, इसके लिए ज्ञानहोती है. फिर भी यदि कोई अशुद्धि रह गई हो, उसे विशेष रूप से दर्शन-चारित्र की आराधना के द्वारा आत्मा की शुद्ध करने के लिए इस सूत्र में क्रमशः प्रक्रिया बतलाई गई है. विशुद्धि करने के लिए(विशोधीकरण)। १. पापरूपी शल्य को सर्वप्रथम लाने का प्रयत्न करने के लिए ४. निन्दित, गर्हित तथा आलोचित पापों को आत्मा से (उत्तरीकरण)। सदा के लिए बाहर निकालने हेतु तथा उन पापों के २. आलोचना, निन्दा, गर्हा आदि प्रायश्चित के द्वारा शल्य को उपद्रव से मुक्ति हेतु कायोत्सर्ग करने के लिए ऊपरलाने के लिए(प्रायश्चित्तकरण)। (विसल्लीकरण)। Jain R For Parvates Personal use only
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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