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आराधना-विराधना से सम्बन्धित जानकारी इस विराधना से बचने के लिए यह 'ईरियावहियं सत्र'
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्र स्वरूप मोक्षमार्ग की बोला जाता है । विराधना चार प्रकार की होती है। उपासना करनी चाहिए अर्थात् संयम मार्ग का विधि के (१)अतिक्रम : आराधना भंग के लिए कोई प्रेरणा करे तथा स्वयं अनुसार पालन करना चाहिए। उसे आराधना कही जाती
उसका निषेधन करें। है। इस आराधना से विपरीत-विकृत-आचरण अथवा (२)व्यतिक्रम : विराधना की तैयारी करें। दोष या त्रुटियुक्त आचरण, जिसके करने से दुःख उत्पन्न (३)अतिचार : कुछ अंशों में दोष का सेवन करें। हो, उसका आचरण करना, उसे विराधना कही जाती है। (४)अनाचार : आराधना का सम्पूर्णतया भंग करें।
श्री ईरियावहियं सूत्र के द्वारा विराधना की क्षमापना से सम्बन्धित जानकारी • एकेन्द्रिय = २२, द्विइन्द्रिय = २, त्रिइन्द्रिय • राग द्वेष =२, मन-वचन-काया-३, करना-करवाना-अनुमोदन करना =३
=२, चतुरिन्द्रिय =२ कुल = २८ भूतकाल - वर्तमानकाल - भविष्यकाल = ३, इन सारी विराधनाओं के • पंचेन्द्रिय में नरक = १४, देव = १९८, लिए ६ की साक्षी से क्षमा मांगता हूँ । अरिहंत - सिद्ध - साधु -
मनुष्य = ३०३, तिर्यंच =२० कुल =५६३ सम्यग्दृष्टिदेव - गुरु तथा आत्मा =६ । ५६३ भेदवाले जीवों की १० (अभिहया... • ५६३०x२xxx ३ x ६ = १८,२४,१२० से ववरोविया तक) प्रकार की विराधना = इस सूत्र के द्वारा अठारह लाख, चौबीस हजार एक सौ बीस प्रकार की
क्षमापना मांगी जाती है। श्री ईरियावहियं सूत्र की ७ संपदा तथा तस्स उत्तरी सूत्र की ८ वीं संपदा कहलाती है। (१) अभ्युपगमसंपदा : आलोचना प्रतिक्रमण रूप में (५) संग्रह संपदा : जिस जीव की विराधना की हो उसका प्रायश्चित को अंगीकार करने का भाव
समूह 'जे मे जीवा विराहिया ॥५॥ होने के कारण दो पद की संपदा (६)जीव संपदा संग्रह में एकत्र जीवों के प्रकार बताना 'इच्छाकारेण...से पडिक्कमिउं' ॥१॥
___ 'एगिदिया..पंचिंदिया' ॥६॥ (२) निमित्त संपदा : विराधना होने का निमित्त अर्थात् किस (७) विराधना संपदा : हर प्रकार के जीवों की १० प्रकार से पाप की आलोचना करनी है?
विराधना 'अभिहया... ववरोविया... 'ईरियावहियाए विराहणाए'॥२॥
दुक्कडं' ॥७॥ (३) ओघसंपदा : विराधना होने का सामान्य कारण (८)प्रतिक्रमण संपदा : जो पाप हुए हैं, उन पापों का प्रतिक्रमण अर्थात् मार्ग में गमनागमन करते हुए
'तस्स उत्तरी... काउस्सग्गं' ॥८॥ विराधना हुई हो ‘गमणागमणे' ॥३॥ इसमें प्रथम पाँच संपदा श्री ईरियावहियं सूत्र की मुख्य (४) इतरहेतु संपदा : विराधना होने का विशेष कारण.... संपदा कहलाती है। साथ ही जीव संपदा, विराधना संपदा तथा
'पाणक्कमणे...संकमणे'॥४॥ प्रतिक्रमण संपदा व चूलिका संपदा कहलाती है।
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