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५.संग्रह संपदा जे मे जीवा विराहिया ॥५॥ जे मे जीवा विरा-हिया ॥५॥
मेरे द्वारा जो कोई जीव पीड़ित हुए हों । ५.
६.जीव संपदा एगिदिया, बेइंदिया, एगिन्-दिया,बेइन्-दिया एक इंद्रिय(स्पर्शेद्रिय ) वाले, दो इंद्रिय(स्पर्शेद्रिय औररसनेंद्रिय) वाले, तेइंदिया, चउरिंदिया, ते इन्-दिया, चउ-रिन्-दिया, तीन इंद्रिय(स्पर्शेद्रिय, रसनेंद्रिय और घ्राणेंद्रिय वाले )चार
इंद्रिय(स्पर्शेद्रिय,रसनेंद्रिय, घ्राणेंद्रिय औरचक्षुरिंद्रिय)वाले, पंचिंदिया॥६॥ पञ्-(पन्)-चिन्-दिया॥६॥ पांच इंद्रिय वाले।६. गाथार्थ : एक इन्द्रिय वाले, दो इन्द्रिय वाले, तीन इन्द्रिय वाले, चार इन्द्रिय वाले, पाँच इन्द्रिय वाले जीवो... ६.
७. विराधना संपदा अभिहया, वत्तिया, लेसिया, अभि-हया, वत्-तिया, लेसि-या, | चौट पहुंचाई गई हों, धूल से ढके गये हो,
भूमि के साथ मसले गये हो, संघाइया, संघट्टिया,परियाविया स(सन्)-घाइया,सइ (सन्)-घट-टिया परस्पर शरीर से टकराये गये हो, थोड़ा स्पर्श किलामिया परि-या विया, किला-मिया,
कराया गया हो, कष्ट पहुंचाया गया हो, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं उद्-द-विया, ठाणाओ ठाणम्
डराये गये हो, एक स्थान से दूसरे स्थान पर संकामिया, सङ्-का-मिया
रक्खे गये हो, जीवियाओ ववरोविया, जीवि-याओ वव-रो-विया,
प्राण रहित किये गये हो, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥७॥ तस्-स मिच्-छा मि दुक्-क-डम् ॥७॥ मेरे ये सर्व दुष्कृत्य मिथ्या हो । ७.
गाथार्थ : पाँव से चोट पहुंचाई हो, जमीन पर मसले गये हो, धूल से ढंके हो, परस्पर शरीर से टकराये गये हो, थोड़ा स्पर्श कराया गया हो, कष्ट पहुंचाया गया हो, खेद पहुंचाया गया हो, डराये गये हो, एक स्थान से दूसरे स्थान पर रक्खे गये हो, डराये गये हो, प्राण रहित किये गये हो, मेरे ये सब दुष्कृत्य मिथ्या हो । ७.
उपयोग के अभाव से होते उच्चारण आदि से सम्बन्धित सूचनाए अशुद्ध उच्चारो के सामने शुद्ध उच्चार (जिस सूत्र में गाथा न हो, फिर भी अंक दिए गए हो तो उसे सम्पदा समझना चाहिए।) शुद्ध
• 'इच्छाकारेण..ईरियावहियं पडिक्कमामि ?' यह पद बोलते समय प्रश्न पूछते हो, ईच्छा.संदि. भगवान् इच्छा. संदि. भगवन् ऐसा भाव मन में लाना चाहिए। ईरियावियाए ईरियावहियाए |• 'पडिक्कमिउं' में अन्त में स्थित ''(अनुस्वार) का उच्चारण करते समय दोनों ईच्छामि पडिकमिउ इच्छामि पडिक्कमिउं होंठ सटे होने चाहिए। एकिदिया एगिदिया
'पडिक्कमामि, पडिक्कमिउं, पाणक्कमणे' आदि शब्दों में 'क्क' सन्ध्यक्षर का अभिया अभिहया
उच्चारण शुद्धता पूर्वक करने के लिए अक्षर पर जोर देना चाहिए। संधाया संघाइया
• 'पणग' के बाद आंशिक रुककर 'दग-मट्टी', उसके बाद 'मक्कडा-संताणा' मकडा मक्कडा
एक साथ बोलकर 'संकमणे'अलग से बोलना चाहिए। उर्दुविया उद्दविया
इसी प्रकार 'ठाणाओ ठाणं संकामिया', 'जीवियाओ ववरोविया' एक साथ वतिया वित्तिया
बोलना चाहिए, 'परन्तु तस्स-मिच्छा-मि-दुक्कडं' अलग से बोलना चाहिए।
श्री ईरियावहियं सूत्र की महत्ता हृदय में पश्चात्ताप के भाव के साथ श्री। उस समय पू. साधु-साध्वीजी भगवंत, पौषधार्थी तथा श्रावक-श्राविका अइमुत्ता महामुनि ने यह ईरियावहियं सूत्र को (लघु करते हैं । १०० कदम से अधिक बाहर जाना हो अथवा शायद १०० प्रतिक्रमण सूत्र) बोलते-बोलते केवलज्ञान प्राप्त कर कदम के अन्दर भी जीव की विराधना हुई हो, उस समय सामायिक, लिया था । हमें भी यह सूत्र पश्चाताप से भावपूर्ण पौषध, चैत्यवंदन, देववंदन, स्वाध्याय, ध्यानादि करने से पहले तथा एक बनकर गद्गद होकर बोलना चाहिए।
क्रिया से दूसरी क्रिया में प्रवेश करने से पूर्व यह ईरियावहियं सूत्र सर्वजीव श्री लघु प्रतिक्रमण सूत्र मात्र गमनागमन की की क्षमापना के लिए बोला जाता है। सर्व जीवों के साथ क्षमापना किए क्रिया का प्रतिक्रमण कहलाता है । इस सूत्र का बिना अन्तःकरण में मैत्रीभाव उत्पन्न नहीं होता है। इस मैत्रीभाव से रहित उपयोग रास्ते में आते-जाते (गमनागमन करते हुए) सारी क्रिया व्यर्थ सिद्ध होती है। अतः 'क्षमा' प्रधान जैनधर्म में यह सूत्र यदि किसी भी जीव की विराधना का पाप लगा हो, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
अशुद्ध
Jain
Acation International
a
aye
aaryory.